इस शाम की देहलीज़ पे,
कभी कोई दस्तक हो,
जो खोलूं दरवाज़ा,
तो सामने खड़ी तू हो...
तेरे आने से शायद,
तेरे आने से शायद,
कुछ करार आ जाए,
वरना बेकरार मेरी,
ये शामें सारीं हों....
तू आये तो अपनी हथेलियों में,
तेरे मुंह को छिपाऊँ,
और फिर तेरे होठों पर मेरी,
अपने आंखों के आईने में,
उसके बाद फिर तुझसे दो बात मेरी हो...
बस इसी ख्याल में हर शाम,
खो जाता हूँ मैं,
की कम से कम - आज तो,
इक मुलाकात हमारी हो...
तू आये पास मेरे,
तुझसे करूँ मैं प्यार,
ना जाने कब ऐसी,
ये किस्मत हमारी हो....
वाह वाह क्या बात है! अत्यन्त सुंदर रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeletebahut umdaaaa......
ReplyDeletedua hai ki aapka ye khyal jaldi hi hakikat ban jaye....:))
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