इस बार तो 'अश्कों' के ही, 'अलाव' जले हैं...'
'आओगे तुम कभी, इस 'राह' पर 'हमसे' 'मिलने,
'आस में इसी 'मोड़' पर, कितने ही 'चिराग' जले हैं...'
'अजीब रंग में, अब के 'बहार' गुजरी है,
'न मिले हो तुम हमसे, न 'गुलाब' खिले हैं...'
'किस-किस 'ख्वाहिश' को, पूरा करेंगे हम अकेले,
'पलकों में तो अपने, ढेरों ही ख्वाब पले हैं...'
'जब भी चाह डूबना, खुशियों के 'समन्दर' में,
'हर बार तो हमें 'दर्द' के, 'सैलाब' मिले हैं...'
'इस बार तेरे 'घर' की 'दिवाली', न जाने कैसी होगी ?
'अपने 'घर' तो 'अँधेरा', सिर्फ 'चिराग' तले है..."