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Tuesday, February 28, 2017

नज़्म का ज़ायका





















बहुत देर हुई,
होंठों पे नज़्म का ज़ायका महसूस किए
ख़ामोशी कब्र सी ना जाने कब से बिखरी है..
रातें देर तक ऊँघती हैं,
पड़ी रहती है छत पर सितारे ओढ़े
मगर इन सितारों में भी अब कोई चेहरा नहीं बनता
कोई नज़्म कोई ख़याल दिल में नहीं आता |
दिन बूढ़ा सा खस्ता सी हालत में
आता है .. चला जाता है
मायूस सी सर्द हवाएं जर्द पत्तों को
उड़ा ले जाती है बहुत दूर ऐसे
कि शाखों पे भी अब कोई नहीं बसता |

मेरा ‘मन’ सिमट के रह गया है
एक छोटे से दायरे में
जैसे एक्वेरियम में मछलियाँ...
भागती हैं – दौड़ती हैं
और फिर सिमट जाती हैं खुद में
मेरा ‘मन’   ठीक वैसे सिमट गया है
अपने ही अंदर
ज़ज्बात और ख़यालात उतरते नहीं कागज़ पर
बहुत देर हुई –
होंठों पे नज़्म का ज़ायका महसूस किये ...!!

मानव ‘मन’


Tuesday, July 22, 2014

ख़ामोशी










ख़ामोशी
परत दर परत
जमती जाती है
एहसासों पर...

सन्नाटा लफ़्ज़ों पर
गिरफ्त बढ़ा है
लम्हा लम्हा

हमारे बीच की आवाजें
अब दफ़न हो रही हैं.......!!!!



मानव मेहता 'मन' 

Monday, January 06, 2014

दर्द-ए-जिंदगी












जिंदगी दर्द में दफ़न हो गई इक रात,
उदासी बिखर गई चाँदनी में घुल कर....!!
चाँद ने उगले दो आँसू,
ज़र्द साँसें भी फड़फड़ा कर बुझ गयी......!!

इस दफा चिता पर मेरे-
मेरी रूह भी जल उठेगी.........!!




मानव मेहता 'मन'  

Sunday, June 12, 2011

ख़ामोशी.............



ख़ामोशी.............
लम्बी ख़ामोशी................ 
चलो अब इसका मज़ा भी चख लें.............. 
तुझसे होते हुए कई शब्दों को सुना मैंने ,
कुछ शहद की तरह मीठे थे
और
कुछ नीम की तरह कडवे............
कुछ में तेरे प्यार की खुशबू महकती थी
तो कुछ यूँ लगता था
जैसे कोई अजनबी ने राह चलते हुए पुकारा हो ..........
कुछ को समझ पाया
और कुछ उड़ते गए यूँ ही हवा में.........
शायद यही गलती हुई मुझसे...........

शायद उनको भी समझना जरुरी था........... 
पर...............
अब जो हालात बन चुके हैं
दरम्यान अपने
शायद उन्ही शब्दों का नतीजा हैं..............

अब केवल ख़ामोशी सुनती है दोनों तरफ......... 
अब शब्द गुफ्तगू करते नहीं आपस में.............

                                                                    
                                                                   :-Manav Mehta