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Sunday, March 01, 2020

किसी की याद में



जाने कहां गई वो शाम ढलती बरसातें
हाथों में हाथ डाल जब दोनों भीगा करते थे
जाने कहाँ गए वो सावन के झूले
इक साथ बैठ जब दोनों झूला करते थे
अब तो बस तन्हाई है और तेरी यादों का साथ
जाने कहाँ गए वो लम्हें जो तेरे साथ बीता करते थे

वो लिखना मेरा कागज़ पे गज़लें
और कागज़ की तुम किश्ती बनाया करते थे
याद है मुझे वो अपनी हर इक बात
जिस बात पर तुम मुस्कराया करते थे

लौट आओ वापिस कि मुझे जरूरत है उस हाथ की
जिसकी अँगुलियों से तुम मेरे होंठ चूमा करते थे
बुला रही है तुमको वो मेरी गज़लें
जिन गज़लों को तुम गुनगुनाया करते थे

लौट आओ उन फूलों की खातिर
मेरी किताबों में जिन्हें तुम प्यार से सजाया करते थे
दे रही सदा अब उस दिल की धड़कन तुमको
जिस दिल को कभी तुम दिल में बसाया करते थे !!


मानव मेहता ‘मन’ 

Monday, January 06, 2014

दर्द-ए-जिंदगी












जिंदगी दर्द में दफ़न हो गई इक रात,
उदासी बिखर गई चाँदनी में घुल कर....!!
चाँद ने उगले दो आँसू,
ज़र्द साँसें भी फड़फड़ा कर बुझ गयी......!!

इस दफा चिता पर मेरे-
मेरी रूह भी जल उठेगी.........!!




मानव मेहता 'मन'  

Wednesday, February 23, 2011

रिश्ते की सच्चाई..........

तुम हो अगर  और मैं भी हूँ,
फिर भी लगती  तन्हाई है..
सच मानो ! दोस्त मेरे
हमारे रिश्ते की रुसवाई 
                 चंद लफ्ज़ भर ना पाए जिसे
                  ये कैसी बीच में  खाई है..
                                तुम दूर हो या पास मेरे
                                बतला दो क्या सच्चाई है ................!! 

Friday, September 04, 2009

नई दोस्त

क्या मेरी 'नयी दोस्त' से मिलोगे?
एक ऐसी दोस्त; जो मेरे, चोबिसों घंटे साथ रहती है...
हर पल, हर जगह,
मेरे साथ चलती है..
जहाँ कहीं भी मैं 'चलता' हूँ,
जहाँ कहीं भी मैं 'रुकता' हूँ-
एक छोटे से 'लम्हे' के लिए भी-
मुझसे 'जुदा' नहीं होती..
'जीवन संगिनी' की तरह मेरे साथ,
कदम से कदम मिला कर चलती है,
उसका नाम है--
"घुटन"
 
यह घुटन है रूप;  'अकेलेपन' का....
यह घुटन है रूप;  'तन्हाई' का....
यह घुटन है रूप;  उस 'याद' का-
जो तुम मुझे दे कर चले गए हो....
 
'सबा' ;  तुम तो चले गए हो 'अकेले',
मगर मुझे छोड़ गए हो,
 इस नए साथी,
 इस  नए  'हमसफ़र'  के साथ.....
 
 'घुटन',  'घुटन',  'घुटन'........
और सिर्फ  'घुटन'-----
एक अजीब सा आलम है-- 
इस 'घुटन' का....
तलाश करता हूँ -
इस 'आलम' में खुद को...
खोजता हूँ अपने वजूद को...
ढूंढ़ता  हूँ उन पलों को-
जो 'पल' कभी हमने साथ ;
इक साथ गुजारे थे...
वो पल जो गवाह हैं,
हमारे 'प्यार' के...
 
मगर इस आलम में,
मुझे मिलता है --
सिर्फ... 'अकेलापन'....
उन पलों की बस याद ही,
मेरे पास रह गयी है--
और साथ रह गयी है---
मेरी यह -- " नयी दोस्त...................
...................."