Showing posts with label प्यार. Show all posts
Showing posts with label प्यार. Show all posts

Friday, March 06, 2020

मोहब्बत का टुकड़ा















देर रात जब मोहब्बत ने
दस्तक दी चौखट पर
मैनें अपनी रूह को जला
दिल को रोशन कर दिया
लफ्ज़ दर लफ्ज़ 
चमकने लगे ज़हन में
मैनें एक एक करके
इश्क़ के सभी हर्फ़ पढ़ डाले
इश्क़ मेहरबान हुआ मुझ पर
दुआएं कबूल हुईं मेरी
हर्फे- मोहब्बत में
तेरा नाम लिखा पाया...!!

देर रात जब मोहब्बत ने
दस्तक दी चौखट पर
तेरी मोहब्बत का इक टुकड़ा
यूँ आ गिरा दामन में मेरे...!!



~ मानव 'मन'

Wednesday, March 04, 2020

विष - अमृत














बरसों पहले
एक खेल खेला करते थे हम लोग
विष- अमृत नाम था शायद...!!
भागते - भागते जब कोई
छू लेता था किसी को
तो विष कहा जाता था
और वो एक टक पुतले के जैसे
रुक जाता था....
ना हिलता था ना कुछ बोल पाता था...
फिर जब कोई और उसे छू लेता तो
अमृत बन जाता था
खेलता था पहले के जैसे
भागता था... दौड़ता था.....!!

 आज फिर से मैं
इक दोस्त को अमृत कह रहा हूँ
पर ना जाने क्यों
वो हिलता नहीं.... उठता नहीं....!!
जाने किस तरह का विष
इसे मिला है इस रोज़....!!!




(दोस्त की मौत पर)

~मानव 'मन'

मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...



मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब
मेरी ख़्वाहिशें, मेरी चाहत
मेरे सपने, मेरे अरमान
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...

देर शाम तक छत पे टहलना
डूबते सूरज से बातें करना
नीले कैनवस पर रंगों का भरना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...

किताबों के संग वक़्त बिताना
हर शायरी पे 'वाह' फ़रमाना
हर लफ्ज़ पे 'जाँ' लुटाना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...

चमकती चाँदनी रातों से मिलना
उड़ते फिरते 'लफ्ज़' पकड़ना
तारों से कोई नज़्म का बुनना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...


~मानव 'मन'

Sunday, March 01, 2020

किसी की याद में



जाने कहां गई वो शाम ढलती बरसातें
हाथों में हाथ डाल जब दोनों भीगा करते थे
जाने कहाँ गए वो सावन के झूले
इक साथ बैठ जब दोनों झूला करते थे
अब तो बस तन्हाई है और तेरी यादों का साथ
जाने कहाँ गए वो लम्हें जो तेरे साथ बीता करते थे

वो लिखना मेरा कागज़ पे गज़लें
और कागज़ की तुम किश्ती बनाया करते थे
याद है मुझे वो अपनी हर इक बात
जिस बात पर तुम मुस्कराया करते थे

लौट आओ वापिस कि मुझे जरूरत है उस हाथ की
जिसकी अँगुलियों से तुम मेरे होंठ चूमा करते थे
बुला रही है तुमको वो मेरी गज़लें
जिन गज़लों को तुम गुनगुनाया करते थे

लौट आओ उन फूलों की खातिर
मेरी किताबों में जिन्हें तुम प्यार से सजाया करते थे
दे रही सदा अब उस दिल की धड़कन तुमको
जिस दिल को कभी तुम दिल में बसाया करते थे !!


मानव मेहता ‘मन’ 

Monday, January 06, 2014

दर्द-ए-जिंदगी












जिंदगी दर्द में दफ़न हो गई इक रात,
उदासी बिखर गई चाँदनी में घुल कर....!!
चाँद ने उगले दो आँसू,
ज़र्द साँसें भी फड़फड़ा कर बुझ गयी......!!

इस दफा चिता पर मेरे-
मेरी रूह भी जल उठेगी.........!!




मानव मेहता 'मन'  

Saturday, April 20, 2013

प्यार के रंगों से सजी जिंदगी




जब से बा-रंग हुई है जिंदगी,
खुद को ढूँढता फिरता हूँ मैं...
न जाने किस ओर गुम हो गया हूँ मैं,
हो गर वाकिफ़ तो बताओ पहचान मेरी......

कुछ इस तरह से है ; कि जिंदगी में,
भर आया है इक प्यार का दरिया...
डूब गया हूँ शायद मैं इसमे,
या तैर रहा हूँ मौजे-सुखन में...
नहीं एहसास अब कोई
इक दर्द-ए-इश्क के सिवा.....

इक पल में ठहर गई थी वो शाम,
जब कोई मेरे सिरहाने में आकर
चुपचाप दबी आवाज में कुछ कह गया था....
मेरे दिल के ‘फसील’ में कोई,
बे-आवाज हो गया था दाखिल,
तब से ठहरी हुई सी है जिंदगी मेरी...
और रुका हुआ हूँ मैं,
बस इक उस अदद आवाज के सहारे...

तमाम फासले जो इक अदद से,
हमारे दरम्यान फैला चुके थे अपनी बाजुएँ,
कि अचानक गुम हो गये,
उस एक लहजा में .....

और मेरी बाहों में सिमट आई तभी से,
प्यार के रंगों से सजी जिंदगी ......!!



मानव मेहता ‘मन’

  

Tuesday, May 10, 2011

चन्दा मेरे सुन ज़रा




बादलों की ओट से
निहारता है
चन्दा
जब तेरी छत पर
सिहरन सी
दौड़ जाती है
तन बदन में
चान्दनी की ठंडक
जब
छू सी जाती है
तेरी आँखों को
मेरे लबों की
खुशबु
तेरी आँखों को
महका सी जाती है....
ये हवा की
झीनी चादर
जब उड़ा जाती है
तेरे बालों को
मेरे हाथों की
नर्मी
तेरे सर को
सहला सी जाती है........


बादल ढक लेता है
जब
चन्दा को
अपने आगोश में
मेरी साँसों की
गर्मी
तेरे लबों को
गरमाहट दे जाती है....
ओ चन्दा मेरे सुन ज़रा
तेरी हर धड़कन में
अब
मेरी ही आहट आती है......
तेरी हर धड़कन में
अब
मेरी ही आहट आती है...........!!



                                                                           :-मानव मेहता  

Saturday, March 26, 2011

प्यार का आलम











चाँद के चेहरे से बदली जो हट गयी,

रात सारी फिर आँखों में कट गयी..


छूना चाहा जब तेरी उड़ती हुई खुशबू को,
सांसें मेरी तेरी साँसों से लिपट गयी..

तुमने छुआ तो रक्स कर उठा बदन मेरा,
मायूसी सारी उम्र की इक पल में छट गयी..

बंद होते खुलते हुए तेरे पलकों के दरम्यान,
ए जाने वफ़ा, मेरी कायनात सिमट गयी...




   मानव मेहता 


Wednesday, February 23, 2011

रिश्ते की सच्चाई..........

तुम हो अगर  और मैं भी हूँ,
फिर भी लगती  तन्हाई है..
सच मानो ! दोस्त मेरे
हमारे रिश्ते की रुसवाई 
                 चंद लफ्ज़ भर ना पाए जिसे
                  ये कैसी बीच में  खाई है..
                                तुम दूर हो या पास मेरे
                                बतला दो क्या सच्चाई है ................!! 

Friday, September 04, 2009

नई दोस्त

क्या मेरी 'नयी दोस्त' से मिलोगे?
एक ऐसी दोस्त; जो मेरे, चोबिसों घंटे साथ रहती है...
हर पल, हर जगह,
मेरे साथ चलती है..
जहाँ कहीं भी मैं 'चलता' हूँ,
जहाँ कहीं भी मैं 'रुकता' हूँ-
एक छोटे से 'लम्हे' के लिए भी-
मुझसे 'जुदा' नहीं होती..
'जीवन संगिनी' की तरह मेरे साथ,
कदम से कदम मिला कर चलती है,
उसका नाम है--
"घुटन"
 
यह घुटन है रूप;  'अकेलेपन' का....
यह घुटन है रूप;  'तन्हाई' का....
यह घुटन है रूप;  उस 'याद' का-
जो तुम मुझे दे कर चले गए हो....
 
'सबा' ;  तुम तो चले गए हो 'अकेले',
मगर मुझे छोड़ गए हो,
 इस नए साथी,
 इस  नए  'हमसफ़र'  के साथ.....
 
 'घुटन',  'घुटन',  'घुटन'........
और सिर्फ  'घुटन'-----
एक अजीब सा आलम है-- 
इस 'घुटन' का....
तलाश करता हूँ -
इस 'आलम' में खुद को...
खोजता हूँ अपने वजूद को...
ढूंढ़ता  हूँ उन पलों को-
जो 'पल' कभी हमने साथ ;
इक साथ गुजारे थे...
वो पल जो गवाह हैं,
हमारे 'प्यार' के...
 
मगर इस आलम में,
मुझे मिलता है --
सिर्फ... 'अकेलापन'....
उन पलों की बस याद ही,
मेरे पास रह गयी है--
और साथ रह गयी है---
मेरी यह -- " नयी दोस्त...................
...................."