Monday, July 29, 2013

लम्हों का सफर















रुखसत होने को अब चंद ही लम्हें बचे हैं .....
मेरे जिस्म से निकला है लावा 
इक शोला बैठ गया है छिप कर -
रूह के पिछले हिस्से में 
इक खला सी बस गयी है ......

ना उदासी है ना हैरानी है 
न ख़ामोशी , न तन्हाई 
सीला सा मौसम है बस...!
न धूप है ना बारिश 
बस चिपचिपे से लम्हें 
बरसते जाते हैं बादलों से ....

मैं बचते बचाते ; इन लम्हों से 
धकेलता हुआ पीछे 
बढ़ता जाता हूँ बादलों की ओर ...

इसी एक बादल पर पाँव रख कर 
मैं उस पार उतर जाऊँगा ..
बस कुछ ही लम्हों में -
इस जहाँ से गुजर जाऊँगा ...!!


मानव मेहता 'मन' 


Monday, July 22, 2013

मानो इक ही कहानी का हक़दार था मैं...


















मानो इक ही कहानी का हक़दार था मैं...
साल दर साल गुजरते गए,
हर लम्हे को पीछे छोड़ा मैंने,
मगर आज तक ये मलाल है मुझको,
कि मेरी जिंदगी कि किताब के हर सफ्हे पर;
एक सी ही लिखावट नज़र आई है मुझे...

गम ; अफ़्सुर्दगी ; रंज ; और तन्हाई;
बस इन्ही लकीरों में जिया जाता हूँ हर लम्हा...
और मजबूरी के आलम में पलट रहा हूँ,
इक इक करके-
उम्र की इस किताब का हर इक सफ़्हा...

बस अब तो बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ मैं-
इस आखिरी सफ्हे का,
जब इन सबसे निजात मिल जायेगी मुझको,
और मैं भी सोऊंगा इक दिन
अपने Coffin में सुकून भरी नींद....!!



मानव मेहता 'मन' 

Wednesday, July 03, 2013

उमस भरी रात...

रात तारों ने फांसी लगा ली...
चांदनी का कफ़न ओढे-
चाँद सोता रहा ।
दर्द चिपचिपाते रहे आपस में...
उमस भरी रात जख्म कुरेदती रही...
अँधेरा कचोटता रहा-
जेहन में पलती हुई नज़्म को...
क़त्ल हो गए कुछ लफ्ज़-
घुटती हुई साँसों में घुट कर...
कल शब् भर आसमाँ से
मातम बरसते देखा मैंने ।