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Thursday, June 06, 2013

मुहब्बत का इत्र

















इस हवा के बदन पर मैंने 
अपनी मुहब्बत का इत्र छिड़का है .... 
और भेजा है तेरी ओर बंद लिफ़ाफे में भर कर ..... 

जब मिल जाए तो इसको 
धीरे से खोलना 
महसूस करना मेरी वफ़ा को 
और भर लेना साँसों में अपनी .... 

नई सुबह फिर से नया पैगाम भेजूँगा ....... 
तब तक अपने जिस्म को महकाए रखना इससे .... !!


'मन'