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Thursday, March 05, 2020

मनचाहा...











मैंने एक गुल्लक बनाई हुई है
अक्सर तेरे लफ़्ज़ों से
भरता रहा हूँ इसको...
तू जब भी मिलती थी मुझसे
बात करती थी
तो भर जाती थी ये...
ख़ुशनुमा, रुआंसे, उदास, तीखे
मोहब्बत भरे...
हर तरह के लफ्ज़
भरे हुए हैं इसमें...

अब जबकि मैं,
तुझसे बिछड़ कर तन्हा रहता हूँ __
निकाल कर इन्हें खर्च करता हूँ...
नज़्म बुन लेता हूँ, 
और सुन लेता हूँ --
तेरे लफ़्ज़ों से
अपना 'मनचाहा'...!!!



~ मानव 'मन'