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Tuesday, May 10, 2011

चन्दा मेरे सुन ज़रा




बादलों की ओट से
निहारता है
चन्दा
जब तेरी छत पर
सिहरन सी
दौड़ जाती है
तन बदन में
चान्दनी की ठंडक
जब
छू सी जाती है
तेरी आँखों को
मेरे लबों की
खुशबु
तेरी आँखों को
महका सी जाती है....
ये हवा की
झीनी चादर
जब उड़ा जाती है
तेरे बालों को
मेरे हाथों की
नर्मी
तेरे सर को
सहला सी जाती है........


बादल ढक लेता है
जब
चन्दा को
अपने आगोश में
मेरी साँसों की
गर्मी
तेरे लबों को
गरमाहट दे जाती है....
ओ चन्दा मेरे सुन ज़रा
तेरी हर धड़कन में
अब
मेरी ही आहट आती है......
तेरी हर धड़कन में
अब
मेरी ही आहट आती है...........!!



                                                                           :-मानव मेहता  

Saturday, March 26, 2011

प्यार का आलम











चाँद के चेहरे से बदली जो हट गयी,

रात सारी फिर आँखों में कट गयी..


छूना चाहा जब तेरी उड़ती हुई खुशबू को,
सांसें मेरी तेरी साँसों से लिपट गयी..

तुमने छुआ तो रक्स कर उठा बदन मेरा,
मायूसी सारी उम्र की इक पल में छट गयी..

बंद होते खुलते हुए तेरे पलकों के दरम्यान,
ए जाने वफ़ा, मेरी कायनात सिमट गयी...




   मानव मेहता