Tuesday, May 10, 2011

चन्दा मेरे सुन ज़रा




बादलों की ओट से
निहारता है
चन्दा
जब तेरी छत पर
सिहरन सी
दौड़ जाती है
तन बदन में
चान्दनी की ठंडक
जब
छू सी जाती है
तेरी आँखों को
मेरे लबों की
खुशबु
तेरी आँखों को
महका सी जाती है....
ये हवा की
झीनी चादर
जब उड़ा जाती है
तेरे बालों को
मेरे हाथों की
नर्मी
तेरे सर को
सहला सी जाती है........


बादल ढक लेता है
जब
चन्दा को
अपने आगोश में
मेरी साँसों की
गर्मी
तेरे लबों को
गरमाहट दे जाती है....
ओ चन्दा मेरे सुन ज़रा
तेरी हर धड़कन में
अब
मेरी ही आहट आती है......
तेरी हर धड़कन में
अब
मेरी ही आहट आती है...........!!



                                                                           :-मानव मेहता  

14 comments:

  1. बढि़या भाव...

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  2. वाह प्यार की गहराई ऐसी कि मीत बने चन्दा तू बादल आवारा...वाह बहुत खूब...

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  3. ये हवा कीझीनी चादरजब उड़ा जाती हैतेरे बालों कोमेरे हाथों कीनर्मीतेरे सर कोसहला सी जाती है........
    ....bahut hi khubsurat kabita...
















    बादल ढक लेता हैजबचन्दा को अपने आगोश मेंमेरी साँसों कीगर्मीतेरे लबों को गरमाहट दे जाती है...

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  4. तेरी हर धड़कन में
    अब मेरी ही आहट आती है...........!!
    khoobsurat se bhaw

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  5. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  6. वाह …………बहुत सुन्दर भाव्।


    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  7. सुन्दर ..कोमल से भावों से भरी अच्छी रचना

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  8. शायद इसे ही प्रेम कहते हैं .. दिल की गहराइयों से उपजा प्रेम ... बहुत लाजवाब ...

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  9. बहुत सुंदर.....कमाल की पंक्तियाँ लिखी हैं ....

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  10. मानव मेहता जी
    सादर अभिवादन !


    ख़ूबसूरत ब्लॉग !
    दिलकश तस्वीरें !
    प्यारी रचनाएं !
    बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आ'कर ।

    प्रस्तुत रचना भी बहुत अच्छी लगी -
    ओ चन्दा मेरे !
    सुन ज़रा
    तेरी हर धड़कन में
    अब मेरी ही आहट आती है......


    क्या बात है ! वाह वाऽऽह !

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  11. "कहने को बहुत कुछ है
    मगर कैसे कहें हम...?
    बेहतर तो होगा यही
    कि खामोश रहें हम....!!"

    खूबसूरत से एहसास.....

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता