चाँद के चेहरे से बदली जो हट गयी,
रात सारी फिर आँखों में कट गयी..
छूना चाहा जब तेरी उड़ती हुई खुशबू को,
सांसें मेरी तेरी साँसों से लिपट गयी..
तुमने छुआ तो रक्स कर उठा बदन मेरा,
मायूसी सारी उम्र की इक पल में छट गयी..
ए जाने वफ़ा, मेरी कायनात सिमट गयी...
मानव मेहता