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Tuesday, May 08, 2012

दर्द















वक्त को हथेली पर रख कर
ऊँगलियों पर लम्हें गिने हैं...
दर्द देता है हौले से दस्तक-
इन लम्हों के कई पोरों में बसा हुआ है वो....!!

ज़ब्त करती हैं जब पलकें,
किसी टूटे हुए ख्वाब को-
आँखों में दबोचती हैं
तब पिघलता नहीं है मोम-
बस टुकड़े चुभते हैं उस काँच के....!!

इन आँखों से अब पानी नहीं रिसता,
दर्द अब पत्थर हो चला है.....!!