
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब
मेरी ख़्वाहिशें, मेरी चाहत
मेरे सपने, मेरे अरमान
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
देर शाम तक छत पे टहलना
डूबते सूरज से बातें करना
नीले कैनवस पर रंगों का भरना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
किताबों के संग वक़्त बिताना
हर शायरी पे 'वाह' फ़रमाना
हर लफ्ज़ पे 'जाँ' लुटाना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
चमकती चाँदनी रातों से मिलना
उड़ते फिरते 'लफ्ज़' पकड़ना
तारों से कोई नज़्म का बुनना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
~मानव 'मन'
समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
शुक्रिया कविता जी...
Deleteशुक्रिया डॉ. रूपचन्द्र जी।
ReplyDeleteशुक्रिया दिलबाग जी....
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