रात आई और न जाने यूँ गुजर गयी,
लगता है चन्द लम्हों में ज़िन्दगी संवर गयी..
खवाब कुछ और सज गए इन आँखों में,
लगता है चन्द लम्हों में ज़िन्दगी संवर गयी..
खवाब कुछ और सज गए इन आँखों में,
पलकों पर ओस की बूंदें ठहर गयी..
मगर आज न जाने कहां सितारों की लहर गयी..
ऊंगलियाँ तरसती रही वो नाज़ुक सा एहसास पाने को,
निगाहें करती रही पीछा खुशबू उसकी जिधर गयी..
ना आये वो पास तो शायद यह बेहतर होगा,
आजकल न जाने मेरी शराफत किधर गयी..
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मानव मेहता