'इस 'शाम' की 'तकदीर' संवर जाती, तो अच्छा होता....'
'यूँ तो तेरा 'सफ़र' है, कुछ 'लम्हा' ही मेरे साथ,
'जो मंजिल तेरी कुछ दूर होती, तो अच्छा होता....'
'न मालूम कौन हो तुम, क्या नाम है 'तुम्हारा',
'होती कुछ 'पहचान' अपनी, तो अच्छा होता....'
'रहेगा 'उम्र-भर' याद मुझको, ये 'सफ़र' अपना,
'तुमको भी ये 'मुलाकात' याद रहती, तो अच्छा होता....'
'तुझसे करना चाहता था, मैं 'दो बात' अपने 'दिल' की,
'जो 'इजाज़त' तेरी 'मुझको' मिल जाती, तो अच्छा होता...."
बहुत अच्छा लिखा है आपने। कौन कहता है कि हरियाणा में अच्छे शायर नहीं हैं।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी कभी आइएगा।
युसुफ जी ने ठीक कहा बहुत अच्छा लिखते हो
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.............