'मेरी 'किस्मत' बदल नहीं सकती.'
'वो जो कहते थे 'बेवफा' मुझको,
'उनकी 'आदत' बदल नहीं सकती.'
'जिनके हिस्से में 'डूबना' है लिखा,
'मैंने देखा है 'मोहब्बत' का चेहरा ऐसा,
'की फिर से 'तबियत' मचल नहीं सकती.'
'अब तो 'मुश्किल' है 'ठहरना' 'यारों,
'ये 'मौत' मेरी अब टल नहीं सकती.''मैंने 'चाहा' 'वो' जो मिल नहीं सकता,
'दिल की यह 'हसरत' निकल नहीं सकती."
मानव मेहता
"दर्द की शाम ढल नहीं सकती,
ReplyDelete'मेरी 'किस्मत' बदल नहीं सकती.'
bahut achhi shuruaat....
'वो जो कहते थे 'बेवफा' मुझको,
'उनकी 'आदत' बदल नहीं सकती.'
mere liye ye ghazal ka sabse behtareen sher rha...is ke bina ghazal mumkin nahi thi...
'मैंने देखा है 'मोहब्बत' का चेहरा ऐसा,
'की फिर से 'तबियत' मचल नहीं सकती.'
bahut khoob rha....
bahut achhe ashraar hain manav ji...keep it up.......
ReplyDeletevery nice...
bahut sunder likhaa hai aapne...
ReplyDeleteAapki kavita par tipani waise lagegi jaise suraj ko deepak dikhya jaa raha hai........subanallah......
ReplyDelete'मैंने 'चाहा' 'वो' जो मिल नहीं सकता,
ReplyDelete'दिल की यह 'हसरत' निकल नहीं सकती."
शायद .........इससे बेहतर इस कविता का अंत हो नहीं सकता ............