"साँसे भी अब तो, 'ढलने' लगी है,'
'लगता है की, जैसे 'उम्र' 'गुज़रने' लगी है.'
'चंद 'ख्वाहिशों' की उम्मीद, जो थी इस 'ज़िन्दगी' से,'
'वो भी अब तो जैसे, 'बिखरने' लगी है.'
'उतार' फैंक दी उसने 'हाथों' से, मेरे 'प्यार' की 'निशानी,'
'शायद' 'वो' भी अब, 'दुनिया' से डरने लगी है.'
'है 'अफ़सोस' की तू, मेरी न हो पाएगी कभी,'
'है 'ख़ुशी' मगर, तेरी 'झोली' 'खुशियों' से भरने लगी है.'
'मेरा क्या है, क्यों बहाते हो 'आंसू' मेरे लिए ?
'मेरी 'शम्मा' तो 'ज़िन्दगी' की धीरे-धीरे, 'बुझने' लगी है.'
'ये दूर कही 'शहनाइयों' की आवाज़, सुनाई दी है मुझको,'
'शायद वो 'दुल्हन' की तरह, अब 'सँवरने' लगी है."
prem kee peeda prtyek panktee men samahit hai.
ReplyDelete- ashok lav
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
विरह् वेदना लिये संवेदनशील अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
ReplyDeleteCCNA 1 Exploration v4.0 Modules Answer, CCNA 2 Exploration v4.0 Modules Answer, CCNA 3 Exploration v4.0 Modules Answer, CCNA 4 Exploration v4.0 Modules Answer.
ReplyDeleteAll CCNA Exploration Answer
विरह की पीड़ा लफ्जों में उभर आई है......
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