अजीब है, की मेरा घर, पानी में डूबा पडा है,
मेरी आँख का समंदर, फिर भी सूखा पडा है..दो वक़्त की रोटी भी, मय्यसर नहीं उसको,
तंगदस्ती की हालत में, मेरा बच्चा भूखा खड़ा है...
मैं अपने पैरों, को अपनी चादर के अन्दर समेट तो लेता,
मगर मेरा पैर, मेरी चादर से दोगुना बड़ा है..
अगले साल इसको, मरम्मत करवा ही लूँगा,
मेरी छत का छप्पर, जो बरसो से टूटा पडा है..
उम्मीद नहीं की आज की रात, चूल्हा भी जल पायेगा,
आटे की तरह बालन भी, गीला पड़ा है..
मैं किस के साथ तुझे विदा करूँ, तू ही बता,
हर कोने वो 'हैवान' मुंह बाए खडा है..
मेरी बीवी समझदार है, कुछ नहीं कहती,
मगर सालों से उसका गला भी सूना पड़ा है.. अब मिटटी का घोड़ा, उसको कहाँ से लाकर दूंगा,
मेरा बच्चा हो कर भी, बच्चों सा जिद पर अडा है..
this poem is amazing sir ji.aisa lgta hai jaise ki kisi raah chalte gareeb ko dekh kar likhi gayi ho.or uski bhawnao ko aise explaine karna vaah vaah vahhhhhh....................too good....I have no word for this
ReplyDeletebut sir ji thoda dheere dheere likhe.hume itni poems to padne de pehle
ReplyDeleteare you married?
ReplyDeleteBahut hi bahut sunder rachna,,,,,,,,
ReplyDeletevaah bhaijaan.....ek ek pankti dil ko choo gayi.....kahi bhi ye nahi laga ki kavita aapse door ja rahi hai....hum sabhi shariq the is Garibi me.....bas yahi zinda ho gayi aapki Kavita..
ReplyDeleteatulniya...
arya manu,Pune/Udaipur
9923883490
bahut sundar lafjon mein garibi vyakt ki hai manav ji.........
ReplyDeleteamazing work.......
बेहतरीन............
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