I have share best Romantic Hindi Poetry. Best Romantic Hindi Poetry is the one of the Best Destination of Hindi Shayari
Wednesday, February 27, 2013
Friday, February 22, 2013
नया रिश्ता
“तरो-ताज़ा लग रहा है आज ये मन मेरा,
जाड़ों की खिली धूप में नहा कर निकला हो जैसे...
जर्द पत्ते भी अब हरे हो गए हैं इसके,
टहनियों पर इसके खुशियों के फूल उग आये हैं...
बदला बदला सा लग रहा है आज हर मौसम,
इसकी दीवारों से दर्द के सीलन की महक हट गई
है,
परदे भी कुछ उजले से नज़र आ रहें हैं मुझको...
और जो गम के काले साये बिखरे रहते थे हर तरफ,
जाने कहाँ इक ही लहजा में घूम गए हैं...
और जैसे किसी हांड़ी में रख दिए हों,
कुछ चावल पकने की खातिर-
ठीक वैसी ही महक इसके भीतर से आ रही है
मुझको....
इसके भीतर कोई तो नई बात हुई है आज,
इसके भीतर इक ‘नया रिश्ता’ पक रहा है
शायद......”
मानव मेहता ‘मन’
Wednesday, February 13, 2013
Friday, February 08, 2013
वीरान-ए-बहार
Valentine Week Special :)
झुकी हुई पलकों से कुछ इशारे हो गए,
झुकी हुई पलकों से कुछ इशारे हो गए,
डूबते हुए नखुदा को सहारे हो गये...
उम्र भर चाहता रहा खुद को,
इक नज़र में गैर भी प्यारे हो गए...
नशा छाया तुम्हारा हम पे कुछ ऐसा,
बिन सोचे समझे हम तुम्हारे हो गए...
मुझे जब से फलक पर बिठा दिया है तुमने,
तबसे मेरे हमराह चाँद सितारे हो गए...
इक अदद से दिल मेरा सूना सा रहता था,
वीरानों में भी बहारों के नजारे हो गए....!!
Manav Mehta ‘मन’
Saturday, October 27, 2012
तेरे शब्द...
तेरे शब्द
चोट करते हैं
मुझ पर....
किसी लोहार के
हथोड़े कि मानिद...
मैं सोच रहा हूँ
आखिर
तुम मुझे __
किस शक्ल में
ढालना चाहती हो.....
Wednesday, August 08, 2012
रुखसत
तू.... मैं..... और ये रब्त........ तेरा मेरा
ये हवाएं यूँ ही बेरंग चलती फिरती है रात भर
जाने कब रुकेगी,कहाँ थमेगी,कहाँ है इनका
बसेरा...
अजीब से हालातों से गुजर रहा हूँ आजकल
खालीपन है आँखों में और अफसुर्दा है
चेहरा.....
शाम ढल चुकी है अब जनाजा न उठा पाओगे तुम
अब तो मैं तभी रुखसत लूँगा जब होगा
सवेरा....!!
मानव मेहता 'मन'
Sunday, July 22, 2012
नज़रों में अगर तू है
सामने जब दरिया हो,तो फिर किनारा क्या है..?
साँस लेने दो मुझे दो घड़ी, दम तो लो
नहीं मालूम तुमको अभी,हमने देखा क्या है..?
अभी और भी ख़्वाब दबे हैं ,आँखों में
अभी तो एक ही टूटा है,तो रोता क्या है..?
ख़्यालों के आँगन में खिला था,फूल मोहब्बत का
अब जा के समझा कि ‘हर-सू’ महकता क्या है..?
तुम थक गए हो तो लौट जाओ, अपने रस्ते
हमारा तो ‘सर्वे-रवां’ है, हमारा क्या है..?
दिल टूटने की तो कभी आवाज़ नहीं आती
फिर ये शोर कैसा है,आखिर माज़रा क्या है..?
मानव मेहता 'मन'
Sunday, May 13, 2012
Tuesday, May 08, 2012
दर्द
वक्त को हथेली पर रख कर
ऊँगलियों पर लम्हें गिने हैं...
दर्द देता है हौले से दस्तक-
इन लम्हों के कई पोरों में बसा हुआ है वो....!!
ज़ब्त करती हैं जब पलकें,
किसी टूटे हुए ख्वाब को-
आँखों में दबोचती हैं
तब पिघलता नहीं है मोम-
बस टुकड़े चुभते हैं उस काँच के....!!
इन आँखों से अब पानी नहीं रिसता,
दर्द अब पत्थर हो चला है.....!!
Sunday, January 15, 2012
तेरी महक.......
कुछ लफ्ज़ अपनी मोहब्बत के-
बिखेर दो मेरे आँगन....
इन हवाओं में घोल दो-
अपनी चाहत की नमी...!!
बरस जाओ बन के बादल
मेरे जिस्म-ओ-जां पर...
कि मेरी रूह का इक टुकड़ा भी प्यासा ना रहें...!!
उतर आओ सितारों के झीने से इक रोज,
और बाँट लो खुद को मेरी रगों में...
आहिस्ता आहिस्ता ;
पिघल जाओ बदन में मेरे-
कि ज़र्रे ज़र्रे से इसके सिर्फ तेरी महक आए....!!
मानव 'मन'
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