कुछ लफ्ज़ अपनी मोहब्बत के-
बिखेर दो मेरे आँगन....
इन हवाओं में घोल दो-
अपनी चाहत की नमी...!!
बरस जाओ बन के बादल
मेरे जिस्म-ओ-जां पर...
कि मेरी रूह का इक टुकड़ा भी प्यासा ना रहें...!!
उतर आओ सितारों के झीने से इक रोज,
और बाँट लो खुद को मेरी रगों में...
आहिस्ता आहिस्ता ;
पिघल जाओ बदन में मेरे-
कि ज़र्रे ज़र्रे से इसके सिर्फ तेरी महक आए....!!
मानव 'मन'
प्रेम से भरा हर एक लफ्ज ...यूँ ही महक बिखरी रहें ...बहुत सुन्दर ...:))
ReplyDeletekomal se bhaw
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.मकर संक्रंति की बधाई..
ReplyDeleteवाह प्रेममयी प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्यार से भरी पाती हैं तुम्हारी
ReplyDeleteशुक्रिया सुमन :)))
ReplyDeleteशुक्रिया रश्मि जी...
ReplyDeleteकुंवर जी आपको भी बहुत बहुत बधाई ...
ReplyDeleteवंदना जी ..अंजू जी शुक्रिया ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteकोमल भावनाओं का सुन्दर प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
Sach mein mehak gayi hai sir.........
ReplyDeleteutri ya nahin ....?
ReplyDelete:))