Sunday, January 15, 2012

तेरी महक.......



















कुछ लफ्ज़ अपनी मोहब्बत के-
बिखेर दो मेरे आँगन....
इन हवाओं में घोल दो-
अपनी चाहत की नमी...!!
बरस जाओ बन के बादल
मेरे जिस्म-ओ-जां पर...
कि मेरी रूह का इक टुकड़ा भी प्यासा ना रहें...!!

उतर आओ सितारों के झीने से इक रोज,
और बाँट लो खुद को मेरी रगों में...
आहिस्ता आहिस्ता ;
पिघल जाओ बदन में मेरे-
कि ज़र्रे ज़र्रे से इसके सिर्फ तेरी महक आए....!!


                                   मानव 'मन' 

14 comments:

  1. प्रेम से भरा हर एक लफ्ज ...यूँ ही महक बिखरी रहें ...बहुत सुन्दर ...:))

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति.मकर संक्रंति की बधाई..

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  3. वाह प्रेममयी प्रस्तुति।

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  4. प्यार से भरी पाती हैं तुम्हारी

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  5. शुक्रिया सुमन :)))

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  6. शुक्रिया रश्मि जी...

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  7. कुंवर जी आपको भी बहुत बहुत बधाई ...

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  8. वंदना जी ..अंजू जी शुक्रिया ..

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  9. कोमल भावनाओं का सुन्दर प्रस्तुतीकरण

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  10. बहुत खूब सर!



    सादर

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  11. Sach mein mehak gayi hai sir.........

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता