तू.... मैं..... और ये रब्त........ तेरा मेरा
ये हवाएं यूँ ही बेरंग चलती फिरती है रात भर
जाने कब रुकेगी,कहाँ थमेगी,कहाँ है इनका
बसेरा...
अजीब से हालातों से गुजर रहा हूँ आजकल
खालीपन है आँखों में और अफसुर्दा है
चेहरा.....
शाम ढल चुकी है अब जनाजा न उठा पाओगे तुम
अब तो मैं तभी रुखसत लूँगा जब होगा
सवेरा....!!
मानव मेहता 'मन'
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मानव मेहता