खबर नहीं की खुदी क्या है, बेखुदी क्या है,
यहाँ तो आलम है की नहीं मालूम, की आदमी क्या है ?
चढ़ा रखे है यहाँ हर चहेरे में, सौ सौ नकाब,
उतार रखी है सभी शर्म-औ-हया; ये ज़िन्दगी क्या है ?
गर वफ़ा का वजूद है, अब भी दुनिया में कायम,
तो नज़र आती है जो जहाँ में, ये दुश्मनी क्या है ?
बह रहा है 'चश्म ऐ अश्क' ना जाने कब से मेरा,
फिर भी दिल में बसी, ये 'तिशनाकामी' क्या है ?
ये 'मुंसिफ' ये 'इमाम' है अपनी जगह दुरुस्त मगर,
हर बात पर मेरी उनकी, ये 'नुक्ता चीं' क्या है ?
डूब जाते गर मालूम होता; ये 'बहरे हस्ती' क्या है ?
['चश्म ऐ अश्क'- aansuon ka jharna]
['तिशनाकामी' - atyant pyass]
['नुक्ता चीं' - meen mekh nikalna]['रोज़गार'- duniya-daari]
['बहरे हस्ती' -zindagi ka samundar]