Monday, October 26, 2009



"लहरों को 'चकनाचूर' होते
देखा है अक्सर 'चट्टानों' से,
मुझे मालूम न था की इक दिन-
मेरे भी 'सपने'-
इसी तरेह चकनाचूर होकर 'बिखर' जायेंगे.....


मैंने तो अपने आप को समझाया,
की अब ये 'सपने',
कभी 'साकार' न होंगे,

पर ये 'कमबख्त' 'दिल' कहता है की-
 कभी न कभी आकर,
'वो' मेरे 'टूटे' हुए 'सपनों' को,
'नया रूप' देंगे..



5 comments:

  1. आपका दिल बिलकुल सही कहता है आदमी को निराश नहीं होना चाहिये
    नई सुबह लाने कोसूरज को तपना पडता है
    धरती की प्यास बुझाने कोबादल को फटना पडता है
    मंजिल तक ले जाती हैआशा की एक लकीर
    तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर
    बस दुख मे कभी भी न घबराना
    जीवन के संघरशों से न डर जाना
    मेरे बच्चो बनो तुम कर्म भूमी के वीर
    तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर
    अपकी
    रचना बहुत अच्छी है ये कुछ लाईनें आपके लिये शुभकामनायें

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  2. मगर ये कम्बखत दिल कह्ता है कि
    कभी न कभी आकर
    वो मेरे टूटे हुए सपनों को
    नया रूप दे देंगे .....

    वाह...बहुत खूब....!!
    इन्तजार करने में क्या हर्ज़ है ....!!

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  3. मगर ये कम्बखत दिल कह्ता है कि
    कभी न कभी आकर
    वो मेरे टूटे हुए सपनों को
    नया रूप दे देंगे

    bahut dilke kareeb laga aapki rachna ke ehsaas
    khubsoorat rachna hai

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  4. दिल ठीक कहता है............और वो नया रूप लहरों के समान चट्टानों से टकराने के बाद चकनाचूर नहीं होगा बल्कि चट्टानों के सूखे दामन को अपने साथ भिगो देगा ..............

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता