मेरा अरमान, मेरी ख्वाहिश, मेरी चाहत है तू,
मेरे होंठों पर सजी हुई, मुस्कराहट है तू...
तू ही मेरे जीने का सबब है ए सबा,
मेरी सांसों में बसी हुई सरसराहट है तू...
तूने ही मुझको जीना सिखाया है,
इक तूने ही मुझको अपना बनाया है..
तेरे लिए तो मेरे सातों जनम कुर्बान हैं,
मुझ पर तेरे लाखों ही एहसान हैं...
मेरे ज़िन्दगी में जब से तुम आई हो,
चारों तरफ जैसे खुशियाँ छाई हों...
कभी लगता है तुम अनजान हो जैसे,
कभी लगता है बरसों की पहचान हो जैसे...
जब कभी बेकार की ज़िद पकड़ बैठ जाती हो,
उस पल तुम मुझे बहुत सताती हो...
तेरी ख़ामोशी भी कभी बहुत कुछ कह जाती है,
और कभी तेरी कही बात भी समझ नहीं आती है...
तेरे हाथों को जब कभी थामता हूँ मैं,
खुद को नसीबों वाला मानता हूँ मैं...
जाड़ों की खिली हुई धुप हो तुम,
मेरे ख्वाबों का एक साकार रूप हो तुम...
चांदनी जब टहलती है मेरी छत पर रातों को,
सोचता हूँ उस वक़्त सिर्फ तुम्हारी ही बातों को...
तुझसे जुदा होना मुझे गवारा नहीं है,
तेरे सिवा मेरा कोई सहारा नहीं है...
थामा है जबसे तुमने मेरी दोस्ती का हाथ,
मिट चुकी है तबसे अँधेरे भरी रात...
अब तो दुआ है खुदा से की ये रिश्ता कभी न टूटे,
साथ रहे उम्र भर, ये साथ कभी न छूटे...
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Sunday, November 28, 2010
Friday, November 19, 2010
पतझड़........
रंग बदलते हुए....
हरे भरे पेड़ से लेकर,
एक खाली लकड़ी के ठूंठ तक.......
गए मोसम में,मेरी नज़रों के सामने,
ये हरा-भरा पेड़-
बिलकुल सूखा हो गया....
होले-होले इसके सभी पत्ते,
इसका साथ छोड़ गए,
और आज ये खड़ा है
आसमान में मुंह उठाये-
जैसे की अपने हालत का कारन,
ऊपर वाले से पूछ रहा हो....!!!!
इसके ये हालत,
कुछ मुझसे ज्यादा बदतर नहीं हैं,
गए मोसम में,
मुझसे भी मेरे कुछ साथी,
इसके पत्तों की तरह छुट गए थे......
मैं भी आज इस ठूंठ के समान,
मुंह उठाये खड़ा हूँ आसमान की तरफ.....
आने वाले मोसम में शायद ये पेड़,
फिर से हरा भरा हो जाएगा.....
मगर न जाने मेरे लिए,
वो अगला मोसम कब आएगा.....
जाने कब....???
लिख रहा हूँ मैं अपनी कलम के ठहरने तक....
ज़िन्दगी सुबह से लेकर शाम ढलने तक,
रात तडपाती है सिर्फ सुबह निकलने तक.....
इस दुनिया में अजीब लोग बसते हैं यारों,
जिंदा रहते हैं सिर्फ, सांस चलने तक...
और कब तलक गुलशन में खिजा का जोर चलेगा,
फूल भी बेबस हैं इक बूँद छलकने तक...
दीवाना हूँ न मेरी बातों पर गौर करो,
लिख रहा हूँ मैं अपनी कलम के ठहरने तक....
Wednesday, November 17, 2010
कभी तो खुल के भी मिल......
कभी तो खुल के भी मिल मुझसे किसी मेहरबान की तरह,
मेरा ये दिल है खाली पड़े मकान की तरह...
तेरी चाहत का एहसास मुझे जिंदा रखे है,
वर्ना मेरी ज़िन्दगी तो है इक शमशान की तरह...
तू कुछ और नहीं सिर्फ मेरी अमानत है,
तुझको संभाले रखा है मैंने जिस्म-ओ-जान की तरह...
तेरी मोहब्बत से मेरे गुलशन में बहार आई है,
वर्ना पहले था ये चमन किसी वीरान की तरह...
Saturday, September 11, 2010
आज गर्दे-राह हुआ.............
उम्र गुज़री थी, जिस आशियाने को सजाने में,
वही आशियाना मेरा, जल कर तबाह हुआ....
न जाने किस बात की सज़ा मिली मुझको,
न जाने कौन सा ऐसा, मुझसे गुनाह हुआ....
कतरा कतरा जोड़ कर, जो खुशियाँ समेटी थीं,
उन्ही खुशियों का तमाशा सरे राह हुआ...
जाने किस मोड़ से तेरा साथ छूट गया,
जाने किस मोड़ से दर्द-ओ-ग़म हमराह हुआ...
आस्ताने-यार तक पहुँच पाना मुनासिब नहीं लगता,
आ पड़ा पैरों में, वही मंजिले-गुज़रगाह हुआ...
है ज़माने की चाल बड़ी अजब क्या जानिये,
जो आफ़ताब हुआ करता था कभी, आज गर्दे-राह हुआ....
मानव मेहता
मानव मेहता
Saturday, August 14, 2010
मेरे जीने का थोड़ा सा, सामान कर दिया...
उनकी नज़रों ने मुझे फिर से जवाँ कर दिया,
मुझे छू कर मुझ पर, एहसान कर दिया...
कब से बैठी थी मैं, गुमसुम सी यूँ ही,
दिल में मिरे, इक तूफान कर दिया...
मेरा अब कुछ भी रहा नहीं मेरा,
नाम उसके मैंने जिस्म-ओ-जान कर दिया...
हाल-ए-दिल उसको बयान कर दिया...
मेरे जीने का थोड़ा सा, सामान कर दिया...
मानव मेहता
मानव मेहता
Thursday, August 12, 2010
अब आ भी जाओ ...........
""यूँ तेरा मुझसे रूठ कर जाना गवारा नहीं ,
कि इस दुनिया में कोई भी हमारा नहीं ...
तुम भी चले जाओगे तो कौन साथ देगा ,
तेरे सिवा कोई और हमें देगा सहारा नहीं ..
यूँ तो दीखते है कई लोग हमें महफ़िल में ,
पर इन नज़रों को तेरे सिवा कोई प्यारा नहीं ...
मगर तेरे काबिल इस आसमान में कोई सितारा नहीं ...
तमन्नाएं कुछ नयी करवटें ले रही है इस दिल में ,
अब आ भी जाओ कि तेरे बिना गुजरा नहीं ...""Monday, August 02, 2010
Friday, July 30, 2010
दोस्ती के नाम.......
बड़ा प्यारा हमने तुमसे ये रिश्ता अजीब रखा है,
शुक्रिया तेरा जो मुझे अपने दिल के करीब रखा है..
ये मरासिम रहे बरकरार ये तमन्ना है मेरी,
तेरा नाम आज से हमने अपना नसीब रखा है..
इस पौधे का हमने अपने हाथों से बीज रखा है..
शायद इसने भी दुनियादारी से कुछ सीख रखा है..
न जाना मुझे छोड़ कर मझधार में ए दोस्त,
उड़ जाएगा वो परिंदा, जो मुट्ठी में भींच रखा है...
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