Friday, November 19, 2010

लिख रहा हूँ मैं अपनी कलम के ठहरने तक....











ज़िन्दगी सुबह से लेकर शाम ढलने तक,
रात तडपाती है सिर्फ सुबह निकलने तक.....


इस दुनिया में अजीब लोग बसते हैं यारों,
जिंदा रहते हैं सिर्फ, सांस चलने तक...


और कब तलक गुलशन में खिजा का जोर चलेगा,
फूल भी बेबस हैं इक बूँद छलकने तक...


दीवाना हूँ न मेरी बातों पर गौर करो,
लिख रहा हूँ मैं अपनी कलम के ठहरने  तक....

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मानव मेहता