रंग बदलते हुए....
हरे भरे पेड़ से लेकर,
एक खाली लकड़ी के ठूंठ तक.......
गए मोसम में,मेरी नज़रों के सामने,
ये हरा-भरा पेड़-
बिलकुल सूखा हो गया....
होले-होले इसके सभी पत्ते,
इसका साथ छोड़ गए,
और आज ये खड़ा है
आसमान में मुंह उठाये-
जैसे की अपने हालत का कारन,
ऊपर वाले से पूछ रहा हो....!!!!
इसके ये हालत,
कुछ मुझसे ज्यादा बदतर नहीं हैं,
गए मोसम में,
मुझसे भी मेरे कुछ साथी,
इसके पत्तों की तरह छुट गए थे......
मैं भी आज इस ठूंठ के समान,
मुंह उठाये खड़ा हूँ आसमान की तरफ.....
आने वाले मोसम में शायद ये पेड़,
फिर से हरा भरा हो जाएगा.....
मगर न जाने मेरे लिए,
वो अगला मोसम कब आएगा.....
जाने कब....???
भावपूर्ण अभिव्यक्ति..............बदलाव तो नियति है......जैसे मौसम एक सा नहीं रहता वैसे ही जीवन में भी पतझड़ के बाद बसंत जरूर आता है............
ReplyDeletebahut hi khubsurat अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteज़िंदगी के उतार चड़ाव की कहानी ......लगती है ये
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है ......
साथियों का छूटना पतझर के पत्तों के समान ...अच्छा भिम्ब है ...जीवन अनवरत चलता है और हर राह पर नए साथी भी मिलते हैं ..मौसम बदल ही जायेगा ....अच्छी अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
मौसम बदलते हैं
ReplyDeleteदृष्टिकोण बदलते हैं
हरे से सूखे फिर हरे होने की प्रक्रिया चलती रहती है ...
बहुत ही अच्छी रचना
bबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। पत्झड के बाद बहार आती है बस धीर धरो। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआने वाले मोसम में शायद ये पेड़,
ReplyDeleteफिर से हरा भरा हो जाएगा.....
यही आशा व्यक्ति को जीवन जीने की प्रेरणा देती है ..बहुत खूब ..शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
पतझड के बाद बसंत आता है..बस वही सोच रखें ..बदलते मौसम के साथ मनोभावों की तुलना कविता एक अच्छी प्रस्तुति है.
ReplyDelete