उनकी नज़रों ने मुझे फिर से जवाँ कर दिया,
मुझे छू कर मुझ पर, एहसान कर दिया...
कब से बैठी थी मैं, गुमसुम सी यूँ ही,
दिल में मिरे, इक तूफान कर दिया...
मेरा अब कुछ भी रहा नहीं मेरा,
नाम उसके मैंने जिस्म-ओ-जान कर दिया...
हाल-ए-दिल उसको बयान कर दिया...
मेरे जीने का थोड़ा सा, सामान कर दिया...
मानव मेहता
मानव मेहता
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteBahut acchi achna hai manav bhai......
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुतियाँ हैं मानव भाई। बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteमानव......... प्रेम की अनुभूति ............बहुत सुन्दरता से लफ्जों से सजाई है
ReplyDeleteचले जब पथ पर हम साथ साथ
वीरान जिन्दगी को गुलिस्ताँ कर दिया.........
अच्छी ग़ज़ल
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti.
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