Saturday, August 14, 2010

मेरे जीने का थोड़ा सा, सामान कर दिया...

उनकी नज़रों ने मुझे फिर से जवाँ कर दिया,
मुझे छू कर मुझ पर, एहसान कर दिया...

कब से बैठी थी मैं, गुमसुम सी यूँ ही,
दिल में मिरे, इक तूफान कर दिया...

मेरा अब कुछ भी रहा नहीं मेरा,
नाम उसके मैंने जिस्म-ओ-जान कर दिया...

उसकी आँखों ने कुछ ऐसे देखा,
हाल-ए-दिल उसको बयान कर दिया...

वादा जब से किया उसने मिलने का,
मेरे जीने का थोड़ा सा, सामान कर दिया...


मानव मेहता 

6 comments:

  1. वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर !

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  2. Bahut acchi achna hai manav bhai......

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  3. बहुत ही सुंदर प्रस्तुतियाँ हैं मानव भाई। बहुत ही बढ़िया

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  4. मानव......... प्रेम की अनुभूति ............बहुत सुन्दरता से लफ्जों से सजाई है

    चले जब पथ पर हम साथ साथ
    वीरान जिन्दगी को गुलिस्ताँ कर दिया.........

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता