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Thursday, June 06, 2013
Friday, May 24, 2013
तुम्हारा एहसास
अभी अभी
पीपल की झड़ी पत्तियों को
एक तरफ रख कर
जला कर बैठा ही था कि
उसके धुएं में भी
तुम्हारा ही चेहरा नज़र आया
कल भी कुछ ऐसा ही हुआ था
जब रोशनदान से
सूरज की रोशनी
मेरे कमरे में पहुँची थी
तो लगा था
कि तुम आए हो
तुम हर जगह दिखती हो मुझको
तुम नहीं हो
पर...
हर वक़्त तुम्हारा एहसास
मेरे साथ रहता है...!!
मानव मेहता 'मन'
Thursday, May 16, 2013
हाल-ए-जिन्दगी
ना राह ना मंजिल, कुछ ना पाया जिन्दगी में
ना जाने कैसा मोड़ ये आया जिन्दगी में
तकलीफ,दर्द,चुभन,पीड़ा सब कुछ मिले इससे
फ़कत एक खुशी को ही ना पाया जिन्दगी में
वक़्त के मरहम ने सभी घाव तो भरे मेरे
मगर जख़्मों से बने दाग को पाया जिन्दगी में
औरों की खुशी के लिए अपनी खुशी भूल गए
मुस्कराते हुए अकसर गम छुपाया जिन्दगी में
तन्हाइयों को चीरती आवाज ना सुन सका कोई
इस कदर खुद को अकेला पाया जिन्दगी में.....
मानव मेहता 'मन'
Friday, May 10, 2013
अल्फाज़
मेरे अल्फाज़ अब तुम मुझसे यूँ दगा ना करो
मैं जानता
हूँ कि चंद महीनों से ,
मैंने
कागज पर उतारा नहीं तुमको ...
एक मुद्दत
से अपने जख्मों पर ,
तेरे नाम
का मरहम नहीं रखा ...
मगर ऐ
मेरे अल्फाज़
सब कसूर
मेरा तो नहीं ....
तुमने भी
तो कहाँ मेरे जेहन में आकर –
सोई हुई
कविताओं को जगाया था कभी ....
और इन
नज्मों की तारों को भी तो तुमने –
कभी
थर-थराया नहीं था ....
जब कभी
सर्द रातों में –
चाँदनी के
आँगन टहलता था मैं –
तब भी तो
तुम आते नहीं थे ...
और इक रोज
जब उसके शहर मेरा जाना हुआ था –
तब कहाँ
थे तुम ??
क्यूँ
नहीं इक नज़्म बन कर –
उसके
दरवाजे पर छूट आए थे तुम .......
खैर अब जो
कागज कलम लिए बैठा हूँ मैं –
तो उतर आओ
मेरे दिल के किसी कोने से –
इन पन्नों
पर बिखर जाओ –
मेरे लहू
के संग ...
चंद बातें
कर लो मुझसे –
कि आज दिल
उदास बहुत है ....!!
मानव
मेहता ‘मन’
Thursday, May 02, 2013
Friday, April 26, 2013
Saturday, April 20, 2013
प्यार के रंगों से सजी जिंदगी
जब से बा-रंग हुई है जिंदगी,
खुद को ढूँढता फिरता हूँ मैं...
न जाने किस ओर गुम हो गया हूँ मैं,
हो गर वाकिफ़ तो बताओ पहचान मेरी......
कुछ इस तरह से है ; कि जिंदगी में,
भर आया है इक प्यार का दरिया...
डूब गया हूँ शायद मैं इसमे,
या तैर रहा हूँ मौजे-सुखन में...
नहीं एहसास अब कोई
इक दर्द-ए-इश्क के सिवा.....
इक पल में ठहर गई थी वो शाम,
जब कोई मेरे सिरहाने में आकर
चुपचाप दबी आवाज में कुछ कह गया था....
मेरे दिल के ‘फसील’ में कोई,
बे-आवाज हो गया था दाखिल,
तब से ठहरी हुई सी है जिंदगी मेरी...
और रुका हुआ हूँ मैं,
बस इक उस अदद आवाज के सहारे...
तमाम फासले जो इक अदद से,
हमारे दरम्यान फैला चुके थे अपनी बाजुएँ,
कि अचानक गुम हो गये,
उस एक लहजा में .....
और मेरी बाहों में सिमट आई तभी से,
प्यार के रंगों से सजी जिंदगी ......!!
मानव मेहता ‘मन’
Wednesday, April 10, 2013
तेरा नाम
शाम ढली
तो लेम्प के इर्द-गिर्द
कुछ
अल्फाज़ भिन-भिनाने लगे.......
‘टेबल’ के
ऊपर रखे मेरे ‘राईटिंग पेड’ के ऊपर-
उतर जाने
को बेचैन थे सभी ......
कलम उठाई
तो गुन-गुनाई एक नज़्म-
मूँद ली
आँखें दो पल के लिए उसको सुनने की खातिर
हुबहू
मिलती थी उससे –
एक अरसा
पहले जिसे मैंने सुना था कभी ....
आँख खोली
तो देखा –
कुछ हर्फ़
लिखे थे सफ्हे पर ...
महक रहे
थे तेरा नाम बन कर
चमक रहे
थे ठीक उसी तरह –
काली चादर
पर आसमान की –
चंद मोती
चमकते हैं जैसे ......
तेरा नाम
सिर्फ तेरा नाम ना रह कर –
एक
मुकम्मल नज़्म बन गई है देखो .....
इससे
बेहतर कोई नज़्म ना सुनी कभी
ना लिखी
कभी ....... !!
मानव मेहता 'मन'
Friday, March 29, 2013
अनकहे लफ्ज़
कुछ अनकहे लफ्ज़-
टांगे हैं तेरे नाम,
इक नज़्म की खूंटी पर...
और वो नज़्म-
तपती दोपहर में...
नंगे पाँव-
दौड़ जाती है तेरी तरफ ...!!
गर मिले वो तुझको,
तो उतार लेना वो लफ्ज़-
अपने जहन के किसी कोने में
महफूज कर लेना....!!
और मेरी उस नज़्म के पांव के छालों पर,
लगा देना तुम अपनी मोहब्बत का लेप.....!!
मानव मेहता 'मन'
Wednesday, March 20, 2013
दर्द
कुछ रोज पहले ही तो-
दफ़नाया था तुझको...
मकान के पिछले लॉन में.....
मिट्टी की जगह डाले थे,
कुछ लम्हें अफसुर्दगी के-
और अपनी आँखों का खरा पानी भी-
छिड़का था उस पर ...
छिड़का था उस पर ...
और सबसे ऊपर अपने ज़ख्मों का-
बड़ा सा पत्थर भी रख छोड़ा था उस पर....
सोचा था जिंदगी अब से आसान गुजरेगी....
हुं.....!!!
वहम था मेरा.....
भला नाखूनों से भी माँस जुदा हुआ है कभी....
कल रात उस जगह-
इक पौधा उग आया है फिर से...
इक पौधा उग आया है फिर से...
कल रात से दर्द अब फिर से मेरे साथ है.....!!!
:- मानव मेहता 'मन'
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