शाम ढली
तो लेम्प के इर्द-गिर्द
कुछ
अल्फाज़ भिन-भिनाने लगे.......
‘टेबल’ के
ऊपर रखे मेरे ‘राईटिंग पेड’ के ऊपर-
उतर जाने
को बेचैन थे सभी ......
कलम उठाई
तो गुन-गुनाई एक नज़्म-
मूँद ली
आँखें दो पल के लिए उसको सुनने की खातिर
हुबहू
मिलती थी उससे –
एक अरसा
पहले जिसे मैंने सुना था कभी ....
आँख खोली
तो देखा –
कुछ हर्फ़
लिखे थे सफ्हे पर ...
महक रहे
थे तेरा नाम बन कर
चमक रहे
थे ठीक उसी तरह –
काली चादर
पर आसमान की –
चंद मोती
चमकते हैं जैसे ......
तेरा नाम
सिर्फ तेरा नाम ना रह कर –
एक
मुकम्मल नज़्म बन गई है देखो .....
इससे
बेहतर कोई नज़्म ना सुनी कभी
ना लिखी
कभी ....... !!
मानव मेहता 'मन'
.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
ReplyDeleteदुआ है ..वो नाम यूँ ही महकता रहे ... और यूँ ही मुकम्मल नज़्म बनती रहे..।
ReplyDeleteइक तेरा नाम सुनकर लौट आते हैं ये लफ्ज़
वरना लफ़्ज़ों का जाम अब खाली ही रहता है ।
वाकई...भावपूर्ण!!
ReplyDeleteकभी होगी भी नहीं कोई नज़्म तेरे जैसी .... वाह
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति,आभार.
ReplyDeleteआपको नवसंवत्सर की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
बहुत खूब ... इससे बेहतर नज़्म तो हो ही नहीं सकती दुनिया में ..
ReplyDeleteप्रेम की खुशबू अती रहती है इन लफ़्ज़ों से ...
बहुत ही सुंदर भाव संयोजन ....प्रेम की महक से सजी सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है...भावपूर्ण
ReplyDeleteमुहब्बत चीज ही ऐसी है .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....!!