Friday, September 25, 2009

आता है हमें.........


दिल क जख्मों को छुपाना आता है हमें,
उनकी बेवफाईयों को दबाना आता है हमें,
ये सब हो जाता है बड़ी आसानी से,
  क्योंकि अब भी मुस्कुराना आता है हमें...

क्या सुनना चाहोगे?


रोज कहते हो की कुछ सुना दो हमको,
क्या सुनना चाहोगे ये बता दो हमको....
ग़म ए दर्द सुनाएं या करे ख़ुशी का इज़हार,
क्यूंकि सब कुछ तो दिया है तुमने ही हमको......

Thursday, September 24, 2009

नहीं रहता ता-उम्र तक....


नहीं रहता ता-उम्र तक हमसफ़र कोई,
गर मालूम होता तो दिल को लुटाता न मैं.....
तरसना होगा मुझे बाद-ए-मौत भी दीदार को उनके,
खबर होती तो उनकी रह-गुजर में जाता न मैं........

दूरी क्यों है??????????




पास रह कर भी दिलों में दूरी क्यों है,
मुझसे दूर रहने की तुम्हारी ये मजबूरी क्यों है,
समझ सको तो समझ लो इन आँखों की जुबान,
हर इक बात लब से कहें ये जरुरी क्यों है.

Wednesday, September 23, 2009

अकेला...



अकेला आया था,अकेला हूँ, अकेला ही चला जाऊँगा,
कोई नहीं लगता जिसका मैं साथ पा जाऊँगा,
पूरी ज़िन्दगी लोगों ने मुझे आंसू ही दिए,
फिर भी जाते-जाते मैं लोगों को हंसा जाऊँगा.....

बिस्तर...


"हर रात बिस्तर मेरा,
शिकायत करता है मुझसे...
हर सुबह वो रो-रो कर,
सो जाता है तन्हा...."

Saturday, September 19, 2009

दुल्हन की तरह अब सँवरने लगी है.....


"साँसे भी अब तो, 'ढलने' लगी है,'
'लगता है की, जैसे 'उम्र' 'गुज़रने' लगी है.'

'चंद 'ख्वाहिशों' की उम्मीद, जो थी इस 'ज़िन्दगी' से,'
'वो भी अब तो जैसे, 'बिखरने' लगी है.'

'उतार' फैंक दी उसने 'हाथों' से, मेरे 'प्यार' की 'निशानी,'
'शायद' 'वो' भी अब, 'दुनिया' से डरने लगी है.'

'है 'अफ़सोस' की तू, मेरी न हो पाएगी कभी,'
'है 'ख़ुशी' मगर, तेरी 'झोली' 'खुशियों' से भरने लगी है.'

'मेरा क्या है, क्यों बहाते हो 'आंसू' मेरे लिए ?
'मेरी 'शम्मा' तो 'ज़िन्दगी' की धीरे-धीरे, 'बुझने' लगी है.'

'ये दूर कही 'शहनाइयों' की आवाज़, सुनाई दी है मुझको,'
'शायद वो 'दुल्हन' की तरह, अब 'सँवरने' लगी है."

Tuesday, September 08, 2009

पंजाबी ग़ज़ल

अपनी डायरी के पन्नों में से एक पंजाबी ग़ज़ल आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ....उम्मीद है आपको यह पसंद आएगी.... आपकी समीक्षाओं का इंतज़ार रहेगा....


"ਖੁਦ  ਨੂੰ  'ਤੇਰੇ  ਵਰਗਾ'  ਅੱਸੀਂ  'ਬਣਾ'  ਨਾ  ਸਕੇ,
ਆਪਣੇ  'ਦੁਖਾਂ'  ਨੂੰ  'ਦਿਲ'  ਵਿਚ  'ਛੁਪਾ'  ਨਾ  ਸਕੇ....

'ਉਕੇਰ'  ਦਿਤੇ  ਆਪਨੇ  ਸਾਰੇ  'ਗਮ', 'ਲਫਜਾਂ'  ਦੇ  ਰਾਹੀਂ,
'ਪਰ  ਤੇਰੀ  ਨਿਕੀ  ਜਿਹੀ  'ਤਸਵੀਰ'  ਵੀ,  ਅੱਸੀਂ  ਬਣਾ  ਨਾ  ਸਕੇ....

'ਉੰਨਾਂ  'ਖੂਬਸੂਰਤ'  ਪੱਲਾਂ  ਨੂੰ  ਅਸਾਂ  'ਪੀਰੋ'  ਲਿਯਾ, ਇਕ  'ਹਾਰ'  ਦੇ  ਵਿਚ,
'ਪਰ  ਉਸ  'ਗੱਲ'  ਦੇ  'ਹਾਰ'  ਨੂੰ ,ਕਦੇ  'ਗੱਲ'  ਵਿਚ  'ਪਾ'  ਨਾ  ਸਕੇ.....

'ਤੈਥੋਂ  ਵਿਛੜ'  ਕੇ  ਕੁਝ  ਇੰਜ,  ਸਾਡੀ  'ਜਿੰਦਗਾਨੀ'  ਹੋ  ਗਈ,
ਕਦੇ  'ਰੋ'  ਨਾ  ਸਕੇ,  ਕਦੇ  'ਹਸ'  ਨਾ  ਸਕੇ....

'ਤੇਰੀ  'ਯਾਦ'  ਸਾਡੀ  'ਅਖਾਂ'  ਦੇ  ਵਿਚ, 'ਹੰਜੂ'  ਬਣ-ਬਣ  'ਤੈਰਦੀ'  ਰਹੀ,
ਪਰ  ਆਪਣੇ  'ਚਿੱਤ'  ਦਾ  ਹਾਲ,  ਕਦੇ  'ਸੁਣਾ'  ਨਾ  ਸਕੇ...

'ਤੇਰੇ  ਵਰਗੀ,  ਇਕ  'ਹੋਰ'  ਲਭਨੀ  'ਮੁਸ਼ਕਿਲ'  ਸੀ,
ਏਸ  ਕਰਕੇ  ਅੱਸੀਂ  ਕਿਸੇ  ਹੋਰ  ਦਾ,  'ਸਹਾਰਾ'  ਕਦੇ  ਪਾ  ਨਾ  ਸਕੇ.....

'ਤੂੰ'  'ਇੰਜ'  ਨਾ  ਸੋਚੀਂ,  ਤੇਰੇ  ਲਈ  ਅੱਸੀਂ  'ਬਰਬਾਦ'  ਹੋ  ਗਏ,
ਓਹ  ਤਾਂ  'ਕਿਸਮਤ'  ਹੀ  ਅਜਿਹੀ  ਸੀ,  ਕੇ  'ਆਬਾਦ'  ਹੋ  ਨਾ  ਸਕੇ...

'ਬਸ  ਸਾਨੂੰ  'ਮੁਆਫ'  ਕਰ  ਦੇਵੀਂ,  ਜੇ  ਕਦੇ  ਤੈਨੂੰ  ਪਤਾ  ਲਗੇ,
ਕੀ  'ਤੈਨੂੰ'  ਦਿਤੇ  ਹੋਏ  'ਵਾਦੇ',  ਅਸਾਂ  ਕਦੇ  'ਨਿਭਾ'  'ਨਾ'  ਸਕੇ...."

Friday, September 04, 2009

मेरा ख्याल

इस शाम की देहलीज़ पे,
कभी कोई दस्तक हो,
जो खोलूं दरवाज़ा,
तो सामने खड़ी तू हो...
तेरे आने से शायद,
कुछ करार आ जाए,
वरना बेकरार मेरी,
ये शामें सारीं हों....
तू आये तो अपनी हथेलियों में,
तेरे मुंह को छिपाऊँ,
और फिर तेरे होठों पर मेरी,
इक हल्की सी पारी हो...
फिर तुझे मैं बसा लूँ,
अपने आंखों के आईने में,
उसके बाद फिर तुझसे दो बात मेरी हो...
बस इसी ख्याल में हर शाम,
खो जाता हूँ मैं,
की कम से कम - आज तो,
इक मुलाकात हमारी हो...
तू आये पास मेरे,
तुझसे करूँ मैं प्यार,
ना जाने कब ऐसी,
ये किस्मत हमारी हो....

कलंदर दिखाई देंगे

"मेरी 'आँखों' को जब कभी, वो 'मंज़र' दिखाई देंगे;
'आस्तीनों' में खुबे हुए वो 'खंजर' दिखाई देंगे...

'आँखों' में 'तैरता' हुआ वो 'मोहब्बत' का 'दरिया';
'बाँहों' में सिमटे हुए वो 'समंदर' दिखाई देंगे...

एक वो 'शख्स' जो मिलता था हमसे, 'भेष' बदल कर;
'चहरे' के पीछे छिपे हुए, वो 'कलंदर' दिखाई देंगे....

'पूज' कर 'वफ़ा' को, जो 'प्यार' का 'मंदिर' बनवाया था;
वही 'ताजमहल'  फिर हमें,  'बंजर'  दिखाई देंगे....

जिन 'आँखों,  में यार की,  'मूरत'  बसा करती थी;
उन 'आँखों'  में चुभे हुए,  'नश्तर'  दिखाई देंगे....

ढूंढ़ते  हो जिन को,  'दुनिया'  की ' भीड़'  में;
 वो मेरे 'कातिल', मेरे ही 'अन्दर' दिखाई देंगे....."