अभी चार रोज़ पहले ही तो
आई थीं मेरे पास
कहा था उसने
कि इस बार कुछ दिन रुक के जाऊँगी....
मगर आज अचानक से
बिन बताये चली गयी____
ये 'खुशियाँ' भी ना,
मेरे पास कभी ठहरती ही नहीं.....
Romantic Shayari
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Friday, March 18, 2022
खुशियाँ
Friday, March 06, 2020
मोहब्बत का टुकड़ा
देर रात जब मोहब्बत ने
दस्तक दी चौखट पर
मैनें अपनी रूह को जला
दिल को रोशन कर दिया
लफ्ज़ दर लफ्ज़
चमकने लगे ज़हन में
मैनें एक एक करके
इश्क़ के सभी हर्फ़ पढ़ डाले
इश्क़ मेहरबान हुआ मुझ पर
दुआएं कबूल हुईं मेरी
हर्फे- मोहब्बत में
तेरा नाम लिखा पाया...!!
देर रात जब मोहब्बत ने
दस्तक दी चौखट पर
तेरी मोहब्बत का इक टुकड़ा
यूँ आ गिरा दामन में मेरे...!!
~ मानव 'मन'
~ मानव 'मन'
Thursday, March 05, 2020
मनचाहा...
मैंने एक गुल्लक बनाई हुई है
अक्सर तेरे लफ़्ज़ों से
भरता रहा हूँ इसको...
तू जब भी मिलती थी मुझसे
बात करती थी
तो भर जाती थी ये...
ख़ुशनुमा, रुआंसे, उदास, तीखे
मोहब्बत भरे...
हर तरह के लफ्ज़
भरे हुए हैं इसमें...
अब जबकि मैं,
तुझसे बिछड़ कर तन्हा रहता हूँ __
निकाल कर इन्हें खर्च करता हूँ...
नज़्म बुन लेता हूँ,
और सुन लेता हूँ --
तेरे लफ़्ज़ों से
अपना 'मनचाहा'...!!!
~ मानव 'मन'
~ मानव 'मन'
Wednesday, March 04, 2020
विष - अमृत
बरसों पहले
एक खेल खेला करते थे हम लोग
विष- अमृत नाम था शायद...!!
भागते - भागते जब कोई
छू लेता था किसी को
तो विष कहा जाता था
और वो एक टक पुतले के जैसे
रुक जाता था....
ना हिलता था ना कुछ बोल पाता था...
फिर जब कोई और उसे छू लेता तो
अमृत बन जाता था
खेलता था पहले के जैसे
भागता था... दौड़ता था.....!!
आज फिर से मैं
इक दोस्त को अमृत कह रहा हूँ
पर ना जाने क्यों
वो हिलता नहीं.... उठता नहीं....!!
जाने किस तरह का विष
इसे मिला है इस रोज़....!!!
(दोस्त की मौत पर)
~मानव 'मन'
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब
मेरी ख़्वाहिशें, मेरी चाहत
मेरे सपने, मेरे अरमान
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
देर शाम तक छत पे टहलना
डूबते सूरज से बातें करना
नीले कैनवस पर रंगों का भरना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
किताबों के संग वक़्त बिताना
हर शायरी पे 'वाह' फ़रमाना
हर लफ्ज़ पे 'जाँ' लुटाना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
चमकती चाँदनी रातों से मिलना
उड़ते फिरते 'लफ्ज़' पकड़ना
तारों से कोई नज़्म का बुनना
मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब...
~मानव 'मन'
Monday, March 02, 2020
किताबें धूल फांकती है शेल्फ पर
किताबें धूल फांकती है शेल्फ पर
अरसा हो गया है
उन्हें पढ़े हुए
मैं नहीं खोलता अब उनके वर्क –
कि अब उन लफ्ज़ों में
ठहरता नहीं है मन
रात जब मद्धम करके रौशनी को
अपनी टेबल पर बैठता हूँ
तो उन किताबों से खुद ब खुद निकल कर
आ बैठते हैं कुछ अल्फाज़ मेरे ज़ेहन में
बहुत शोर करती है
लफ्ज़ों की खनखनाहट
मगर जब इन्हें समेट कर
लिखना चाहूँ जो राइटिंग पैड पर
तो गायब हो जाते हैं अचानक ...
अब इनसे मेरा वास्ता नहीं रहा कोई
ना मैं अब इनके करीब जाता हूँ
ना ये मेरे करीब आते हैं |
अरसा हो गया
किताबें धूल फांकती है शेल्फ पर ....!!
~मानव ‘मन’
सिर्फ तेरा नाम
कल रात तेरे नाम एक कलाम लिखा
कागज कलम उठा करा इक पैगाम लिखा,
पहले अक्षर से आखिरी अक्षर तक
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा
नाम लिखा.....
ढूँढने निकले कि कहीं से कुछ
अरमान मिले
तुझे देने को कहीं से कुछ सामान
मिले,
मगर फूलों के गाँव से,चाँद की
छाँव से
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा
नाम मिला.....
बहुत कोशिश की मैंने कि इक गजल
बनाऊं
तेरे हुस्न के धागों से प्यार
के मोती सजाऊं,
ढूँढा हर मंजर मे, लफ्जों के
समंदर में
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा
नाम मिला....
तेरे नाम से ही शुरू हुई ये
बंदगी मेरी
तेरे नाम पे ही मुकम्मल होगी
जिंदगी मेरी
देखा जब कभी अपने हाथों की
लकीरों में
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा
नाम दिखा......!!
मानव 'मन'
वो अगर आज यहाँ होते
वो अगर आज यहाँ होते,
तो खुशियों से भरे आसमां होते....
कौन कहता फिर बेवफा उनको,
हम भी तो फिर बावफा होते......
पूरे होते हमारे सपने सभी,
नई उमंगों से भरे आशियाँ होते....
चलते जब साथ कदमों से कदम,
तो रास्ते मंजिलों के खुशनुमां होते.....
गुलाहे-रंग-रंग से भरा होता चमन मेरा
मुअत्तर हर-सू ये सभी बागवां होते....
बज्मे-अंजुम में कटती हमारी रातें सभी
और दिन भी सभी आराम-ए-जां होते....
रंग देते नई तमन्नायें उनकी मोहब्बत में,
कलम के कुछ और ही अंदाज-ए-बयाँ होते.....!!
गुलाहे-रंग-रंग - रंग बिरंगे फूल
मुअत्तर - महकना
हर-सू - चरों तरफ
बज्मे-अंजुम - सितारों की सभा
आराम-ए-जां - सुखद
मानव 'मन'
Sunday, March 01, 2020
किसी की याद में
जाने कहां गई वो शाम ढलती बरसातें
हाथों में हाथ डाल जब दोनों भीगा करते थे
जाने कहाँ गए वो सावन के झूले
इक साथ बैठ जब दोनों झूला करते थे
अब तो बस तन्हाई है और तेरी यादों का साथ
जाने कहाँ गए वो लम्हें जो तेरे साथ बीता करते थे
वो लिखना मेरा कागज़ पे गज़लें
और कागज़ की तुम किश्ती बनाया करते थे
याद है मुझे वो अपनी हर इक बात
जिस बात पर तुम मुस्कराया करते थे
लौट आओ वापिस कि मुझे जरूरत है उस हाथ की
जिसकी अँगुलियों से तुम मेरे होंठ चूमा करते थे
बुला रही है तुमको वो मेरी गज़लें
जिन गज़लों को तुम गुनगुनाया करते थे
लौट आओ उन फूलों की खातिर
मेरी किताबों में जिन्हें तुम प्यार से सजाया करते थे
दे रही सदा अब उस दिल की धड़कन तुमको
जिस दिल को कभी तुम दिल में बसाया करते थे !!
मानव मेहता ‘मन’
Monday, March 06, 2017
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