Thursday, May 02, 2013

रेस










इक ‘रेस’ सी लगी है मानो
दौड़ते जाते हैं सब एक दूसरे से आगे –

जाने सफर जिंदगी का मुकम्मल कब होगा !!


मानव मेहता ‘मन’ 

Friday, April 26, 2013

ऐ मेरे नाहिद












बाद-ए-अरसे तो तू मुझको मिला है ऐ मेरे नाहिद   
फिर यूँ ना कर तू मुझसे अब ये बेरुखी की बातें 

कि मेरे हालात तुझे खोने की गुंजाईश नहीं रखते !!


‘मन’
* नाहिद – प्रियवर,महबूब,प्रेयसी 

Saturday, April 20, 2013

प्यार के रंगों से सजी जिंदगी




जब से बा-रंग हुई है जिंदगी,
खुद को ढूँढता फिरता हूँ मैं...
न जाने किस ओर गुम हो गया हूँ मैं,
हो गर वाकिफ़ तो बताओ पहचान मेरी......

कुछ इस तरह से है ; कि जिंदगी में,
भर आया है इक प्यार का दरिया...
डूब गया हूँ शायद मैं इसमे,
या तैर रहा हूँ मौजे-सुखन में...
नहीं एहसास अब कोई
इक दर्द-ए-इश्क के सिवा.....

इक पल में ठहर गई थी वो शाम,
जब कोई मेरे सिरहाने में आकर
चुपचाप दबी आवाज में कुछ कह गया था....
मेरे दिल के ‘फसील’ में कोई,
बे-आवाज हो गया था दाखिल,
तब से ठहरी हुई सी है जिंदगी मेरी...
और रुका हुआ हूँ मैं,
बस इक उस अदद आवाज के सहारे...

तमाम फासले जो इक अदद से,
हमारे दरम्यान फैला चुके थे अपनी बाजुएँ,
कि अचानक गुम हो गये,
उस एक लहजा में .....

और मेरी बाहों में सिमट आई तभी से,
प्यार के रंगों से सजी जिंदगी ......!!



मानव मेहता ‘मन’

  

Wednesday, April 10, 2013

तेरा नाम





शाम ढली तो लेम्प के इर्द-गिर्द
कुछ अल्फाज़ भिन-भिनाने लगे.......
‘टेबल’ के ऊपर रखे मेरे ‘राईटिंग पेड’ के ऊपर-
उतर जाने को बेचैन थे सभी ......

कलम उठाई तो गुन-गुनाई एक नज़्म-
मूँद ली आँखें दो पल के लिए उसको सुनने की खातिर
हुबहू मिलती थी उससे –
एक अरसा पहले जिसे मैंने सुना था कभी ....

आँख खोली तो देखा –
कुछ हर्फ़ लिखे थे सफ्हे पर ...
महक रहे थे तेरा नाम बन कर
चमक रहे थे ठीक उसी तरह –
काली चादर पर आसमान की –
चंद मोती चमकते हैं जैसे ......

तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम ना रह कर –
एक मुकम्मल नज़्म बन गई है देखो .....

इससे बेहतर कोई नज़्म ना सुनी कभी
ना लिखी कभी ....... !!

मानव मेहता 'मन' 

Friday, March 29, 2013

अनकहे लफ्ज़
















कुछ अनकहे लफ्ज़-
टांगे हैं तेरे नाम,
इक नज़्म की खूंटी पर...
और वो नज़्म-
तपती दोपहर में...
नंगे पाँव-
दौड़ जाती है तेरी तरफ ...!!

गर मिले वो तुझको,
तो उतार लेना वो लफ्ज़-
अपने जहन के किसी कोने में
महफूज कर लेना....!!

और मेरी उस नज़्म के पांव के छालों पर,
लगा देना तुम अपनी मोहब्बत का लेप.....!!



मानव मेहता 'मन' 

Wednesday, March 20, 2013

दर्द












कुछ रोज पहले ही तो-
दफ़नाया था तुझको...
मकान के पिछले लॉन में.....


मिट्टी की जगह डाले थे,
कुछ लम्हें अफसुर्दगी के-
और अपनी आँखों का खरा पानी भी-
छिड़का  था उस पर ...
और सबसे ऊपर अपने ज़ख्मों का-
बड़ा सा पत्थर भी रख छोड़ा था उस पर....

सोचा था जिंदगी अब से आसान गुजरेगी....
हुं.....!!!

वहम था मेरा.....
भला नाखूनों से भी माँस जुदा हुआ है कभी....

कल रात उस जगह-
इक पौधा उग आया है फिर से...
कल रात से दर्द अब फिर से मेरे साथ है.....!!!


:- मानव मेहता 'मन'