Sunday, September 27, 2009

तो अच्छा होता....

"तेरी 'जुल्फ' अगर खुल के बिखर जाती, तो अच्छा होता,
'इस 'शाम' की 'तकदीर' संवर जाती, तो अच्छा होता....'

'यूँ तो तेरा 'सफ़र' है, कुछ 'लम्हा' ही मेरे साथ,
'जो मंजिल तेरी कुछ दूर होती, तो अच्छा होता....'

'न मालूम कौन हो तुम, क्या नाम है 'तुम्हारा',
'होती कुछ 'पहचान' अपनी, तो अच्छा होता....'

'रहेगा 'उम्र-भर' याद मुझको, ये 'सफ़र' अपना,
'तुमको भी ये 'मुलाकात' याद रहती, तो अच्छा होता....'

'तुझसे करना चाहता था, मैं 'दो बात' अपने 'दिल' की,
'जो 'इजाज़त' तेरी 'मुझको' मिल जाती, तो अच्छा होता...."

खुदा किस तरफ...



"कभी मौत चाहते है,
तो कभी तुझे,
अब देखते है खुदा
किस तरफ 'मेहरबान' होता है...."

सहारा है....



"तुम्हारी याद में लिखने बैठा हूँ,
'हर वक्त तसव्वुर तुम्हारा है,'
'इन निगाहों को हटाना ना मुझसे,
'मुझे बस इनका ही सहारा है...."

Saturday, September 26, 2009

दीदार....



"करा दे 'यार', अपना 'दीदार',
'फिर इक बार मुझे,
अपनी 'सूरत' दिखा कर,
'मुझे' 'जीने' की 'इजाज़त' दे दे..."

आजकल.......



"बात करने में वो, 'इतराते' हैं आजकल,'
'नज़र' मिलाने से, 'घबराते' हैं आजकल,'
'न जाने अब क्या हो गया है उनको,'
'हर 'सच' से वो, 'कतराते' हैं आजकल......."


नाम....

"किस नाम से पुकारूं,
 'तुझको' अब मैं,

'पत्थर'
दिल कहूँ ,

या कहूँ
'बेवफा'...."

वफा का असर ..

"ये मेरी 'वफा' का असर है,
                                  या तेरी 'जफ़ा' का......
'जब भी देखो राह पर,
                                'अकेला' भटकता हूँ...."

आरजू

"काश किसी शाम, तुझे अपने आँगन में खडा पाऊं,
'तू हो सामने खड़ी, बस तुझे ही देखता जाऊं...'

'गुज़र जाए गर इस कदर, कई सदियाँ फिर भी,
'तेरे शबाब पर से मैं, न अपनी नज़र हटाऊं...'

'रहते हो खोये, ना जाने तुम किन ख्यालों में,
'तमन्ना है मेरी, की मैं भी तुम्हारे ख्यालों में आऊँ...'

'बढा कर प्यास मेरी, तुम छुडाना न दामन,
'दिल चाहे, की तेरे आँचल की पनाह पाऊँ....'

'क्यूँ करते हो तुम इस कदर, बुझी-बुझी सी बातें,
'तू कहे, तो तेरे दामन को, सितारों से सजाऊँ..."

कौन पहचानेगा तुझे...............???

"कौन है तेरा वहां, किस के पास जायेगा अब तू,
'कौन पहचानेगा तुझे, बस्ती में जो जाएगा अब तू....'

'वो तो बनते है तेरे सामने, तजाहुल-पेशगी*,
'बाद ए मौत ही उसका साथ, पायेगा अब तू....

'सुराब* न निकले, उनकी भी ये दोस्ती कहीं,
'दुआ कर ले खुदा से, वर्ना मर जाएगा अब तू.....'

'हर वक्त तो रहती है आँखों में, यार की गर्दे राह*,
'किस तरह प्यार उसको, दिखा पायेगा अब तू....'

'कब तक उठाये फिरेगा, तू ये बारे-मिन्नत*,
'कर दे वापिस इसको वरना थक जाएगा अब तू....'

'वो शख्स तो है जालिम और जां-गुसिल कब से,
'क्या उसका ये बेदाद*, सह पाएगा अब तू.....'

'न कर उम्मीद किसी से की कोई आएगा पास तेरे,
'इक खलिश* का ही हमराह बन कर, रह जाएगा अब तू...'"

 
 
 
 
*तजाहुल-पेशगी- जान बुझ कर अनजान बनना,
*सुराब- छलावा,
*गर्दे राह- रास्ते की धूल,
*बारे मिन्नत- एहसानों का बोझ,
*जां- गुसिल- प्राण घातक,
*बेदाद- अत्याचार,
*खलिश- चुभन,

Friday, September 25, 2009

दोस्त........


ज़िन्दगी में आते है कई मोड़ ऐसे,
जिन पर सिर्फ इक दोस्त दिखाई देता है...
चले जाते है बिना सोचे समझे उसकी तरफ,
और बाद में फिर दगा भी वही देता है...