"काश किसी शाम, तुझे अपने आँगन में खडा पाऊं,
'तू हो सामने खड़ी, बस तुझे ही देखता जाऊं...'
'गुज़र जाए गर इस कदर, कई सदियाँ फिर भी,
'तेरे शबाब पर से मैं, न अपनी नज़र हटाऊं...'
'रहते हो खोये, ना जाने तुम किन ख्यालों में,
'तमन्ना है मेरी, की मैं भी तुम्हारे ख्यालों में आऊँ...'
'बढा कर प्यास मेरी, तुम छुडाना न दामन,
'दिल चाहे, की तेरे आँचल की पनाह पाऊँ....'
'क्यूँ करते हो तुम इस कदर, बुझी-बुझी सी बातें,
'तू कहे, तो तेरे दामन को, सितारों से सजाऊँ..."