I have share best Romantic Hindi Poetry. Best Romantic Hindi Poetry is the one of the Best Destination of Hindi Shayari
Saturday, October 05, 2013
Monday, September 30, 2013
Saturday, September 21, 2013
....हांसिल.... (लघु कथा)
तुम... तुम तो चली गयी थी ना... फिर कैसे आई हो तुम... क्यूँ आई हो तुम... तुम्हे मेरे सामने आने में ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं हुई?... क्या देखने आई हो तुम भला... यही ना कि तुम्हारे बिना कैसे जी रहा हूँ मैं... या ये देखने आई हो कि कितना मर चुका हूँ तुम्हारे न होने पर... तुम खामोश क्यूँ हो... अब जुबां पर ख़ामोशी कैसे रख ली तुमने... तुम तो ऐसी न थी... तुम तो बेबात मुझे कोसती ही रहती थी... सारा दिन बिना बात पर मुझसे झगड़ा करना तुम्हारी फितरत में शुमार था... अब क्यों खामोश हो... चीखो... चिल्लाओ... गालियाँ दो मुझे... फिर एक बार मुझे बुरा भला कहो... आखिर तुम यही तो करती आई हो हर बार...
अँधेरे में बने एक साए को देख कर राजेश बोलता ही जा रहा था... लम्बी ख़ामोशी के बाद भी जब कोई जवाब न मिला तो उसने कमरे की बत्ती जला दी... मगर वहां कोई नहीं था... था तो सिर्फ वो, उसका ग़म, और उसकी तन्हाई... और खुद को संभाले रखने के लिए एक बोतल शराब... आखिर यही तो हांसिल था उसका इस ज़िन्दगी में... रजनी को खो कर यही सामान तो जुटा पाया था राजेश...
Friday, August 23, 2013
चाँद और तेरी महक
रात भर झांकता रहा चाँद
मेरे दिल के आँगन में.......
कभी रोशनदान से
तो कभी चढ़ कर मुंडेरों पे
कोशिश करता रहा
मेरे अंदर तक समाने की.....
जाने क्या ढूँढ रहा था
गीली मिट्टी में...!!
तेरी यादों को तो मैंने
संभाल के रख दिया था
इक संदूक में अरसा पहले......
फिर भी न जाने कैसे
उसे उनकी महक आ गई...
चलो अब यूँ करें कि
आज दिल के सारे खिड़की-दरवाजे
बंद करके सोयें
कहीं आज फिर
चुरा न ले वो तुझे मुझसे......!!
Manav Mehta 'मन'
Saturday, August 10, 2013
माँ, तुम यहीं रुको, मैं बस अभी आया |
मैले
कुचैले कपड़ों में लिपटी
एक
बूढ़ी औरत
सर
से लेकर पाँव तक झुकी हुई
एक
वक्त की रोटी भी नसीब नहीं जिसको
हाथ
बाए खड़ी है चौराहे पर
पेट
भरने के लिए
मांगती
है भीख |
मुरझाई
हुई सी
इन बूढ़ी आँखों को
चंद
सिक्कों के आलावा
तलाश
है कुछ और |
झाँका
करती है अक्सर
आते
जाते लोगों के चेहरों में
ढूँढा
करती है उस शख्स को
जो
पिछले बरस कह के गया था
‘माँ,
तुम यहीं रुको, मैं बस अभी आया |’
मानव 'मन'
Monday, July 29, 2013
लम्हों का सफर
मेरे जिस्म से निकला है
लावा
इक शोला बैठ गया है छिप
कर -
रूह के पिछले हिस्से में
इक खला सी बस गयी है
......
ना उदासी है ना हैरानी
है
न ख़ामोशी , न तन्हाई
सीला सा मौसम है बस...!
न धूप है ना बारिश
बस चिपचिपे से लम्हें
बरसते जाते हैं बादलों
से ....
मैं बचते बचाते ; इन लम्हों से
धकेलता हुआ पीछे
बढ़ता जाता हूँ बादलों की
ओर ...
इसी एक बादल पर पाँव रख
कर
मैं उस पार उतर जाऊँगा
..
बस कुछ ही लम्हों में -
इस जहाँ से गुजर जाऊँगा ...!!
मानव मेहता 'मन'
Monday, July 22, 2013
मानो इक ही कहानी का हक़दार था मैं...
हर लम्हे को पीछे छोड़ा मैंने,
मगर आज तक ये मलाल है मुझको,
कि मेरी जिंदगी कि किताब के हर सफ्हे पर;
एक सी ही लिखावट नज़र आई है मुझे...
गम ; अफ़्सुर्दगी ; रंज ; और तन्हाई;
बस इन्ही लकीरों में जिया जाता हूँ हर
लम्हा...
और मजबूरी के आलम में पलट रहा हूँ,
इक इक करके-
उम्र की इस किताब का हर इक सफ़्हा...
बस अब तो बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ मैं-
इस आखिरी सफ्हे का,
जब इन सबसे निजात मिल जायेगी मुझको,
और मैं भी सोऊंगा इक दिन
अपने Coffin में सुकून भरी
नींद....!!
मानव मेहता 'मन'
Wednesday, July 03, 2013
Wednesday, June 19, 2013
जिंदगी
कभी हसीं शाम सी कोमल लगती
है जिंदगी....
कभी मासूम सुलझी सी दिखती
है जिंदगी,
कभी उलझनों के जाले बुनती
है जिंदगी......
कभी लगता है कि ये अपनी ही
हो जैसे,
कभी गैरों सी अजनबी लगती है
जिंदगी......
कभी झरनों सा तूफान लगती है जिंदगी,
कभी नदी सी खामोश लगती है
जिंदगी.......!!
मानव ‘मन’
Thursday, June 06, 2013
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