Thursday, March 05, 2020

मनचाहा...











मैंने एक गुल्लक बनाई हुई है
अक्सर तेरे लफ़्ज़ों से
भरता रहा हूँ इसको...
तू जब भी मिलती थी मुझसे
बात करती थी
तो भर जाती थी ये...
ख़ुशनुमा, रुआंसे, उदास, तीखे
मोहब्बत भरे...
हर तरह के लफ्ज़
भरे हुए हैं इसमें...

अब जबकि मैं,
तुझसे बिछड़ कर तन्हा रहता हूँ __
निकाल कर इन्हें खर्च करता हूँ...
नज़्म बुन लेता हूँ, 
और सुन लेता हूँ --
तेरे लफ़्ज़ों से
अपना 'मनचाहा'...!!!



~ मानव 'मन'

11 comments:

  1. वाह!!!
    बहुत लाजवाब...बहुत खूब ल‍िखा है आपने

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  2. वाह !बेहतरीन सृजन

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    1. शुक्रिया अनिता जी।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 06 - 03-2020) को "मिट्टी सी निरीह" (चर्चा अंक - 3632) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    अनीता लागुरी"अनु"

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    1. शुक्रिया अनिता जी...

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  4. वाह!!!
    बहुत सुन्दर...

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता