Friday, March 29, 2013

अनकहे लफ्ज़
















कुछ अनकहे लफ्ज़-
टांगे हैं तेरे नाम,
इक नज़्म की खूंटी पर...
और वो नज़्म-
तपती दोपहर में...
नंगे पाँव-
दौड़ जाती है तेरी तरफ ...!!

गर मिले वो तुझको,
तो उतार लेना वो लफ्ज़-
अपने जहन के किसी कोने में
महफूज कर लेना....!!

और मेरी उस नज़्म के पांव के छालों पर,
लगा देना तुम अपनी मोहब्बत का लेप.....!!



मानव मेहता 'मन' 

17 comments:

  1. ज़ख्म भरें या न भरें .... एक तृप्ति मिल जाएगी

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  2. .बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति मोदी संस्कृति:न भारतीय न भाजपाई . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  3. बहुत खूब ...मौन की एक भाषा

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  4. ...मोहब्बत का लेप........ के मोहब्बत हर ज़ख्म भर देती है !
    बहुत खूब !

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  5. '...उतार लेना वो लफ़्ज़ ,
    अपने ज़ेहन के किसी कोने में
    महफ़ूज़ कर लेना !'
    - एहसास की अपनी भाषा !

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  6. नि:शब्द हूँ ....

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  7. बहुत ही भावात्मक प्रस्तुति,आभार.

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  8. और मेरी उस नज़्म के पांव के छालों पर
    लगा देना तुम अपनी मोहब्बत का लेप.....!!

    सालते छालों पर इससे बेहतर मरहम क्या होगा भला...।

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  9. मोहब्‍बत का लेप...;क्‍या बात है

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  10. बहुत खूब ... शब्दों की जादोगरी ...
    मुहब्बत का लेप ... आफरीन ...

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  11. मखमली जज़्बात ............प्यार की सौगात

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  12. अनकहे लफ़्जों की अनोखी दास्ताँ...

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  13. वाह..
    बहुत ही ख़ूब
    सुन्दर भावात्मक अहसास लिए रचना..
    :-)

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  14. मोहब्बत और तेरे हाथों की छुवन हर लेंगे सब दर्द......

    बेहद खूबसूरत ...
    अनु

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  15. अनकहे लफ्जों को नज्म बयाँ कर देती है
    उस नज्म को उसकी मंजिल मिले तो बढ़िया
    बहुत ही सुन्दर रचना ...

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता