Monday, March 02, 2020

वो अगर आज यहाँ होते


वो अगर आज यहाँ होते,
तो खुशियों से भरे आसमां होते....
कौन कहता फिर बेवफा उनको,
हम भी तो फिर बावफा होते......
पूरे होते हमारे सपने सभी,
नई उमंगों से भरे आशियाँ होते....
चलते जब साथ कदमों से कदम,
तो रास्ते मंजिलों के खुशनुमां होते.....
गुलाहे-रंग-रंग से भरा होता चमन मेरा
मुअत्तर हर-सू ये सभी बागवां होते....
बज्मे-अंजुम में कटती हमारी रातें सभी
और दिन भी सभी आराम-ए-जां होते....
रंग देते नई तमन्नायें उनकी मोहब्बत में,
कलम के कुछ और ही अंदाज-ए-बयाँ होते.....!!



गुलाहे-रंग-रंग  - रंग बिरंगे फूल
मुअत्तर   -  महकना
हर-सू      -  चरों तरफ
बज्मे-अंजुम    -  सितारों की सभा
आराम-ए-जां    -   सुखद



मानव 'मन' 

Sunday, March 01, 2020

किसी की याद में



जाने कहां गई वो शाम ढलती बरसातें
हाथों में हाथ डाल जब दोनों भीगा करते थे
जाने कहाँ गए वो सावन के झूले
इक साथ बैठ जब दोनों झूला करते थे
अब तो बस तन्हाई है और तेरी यादों का साथ
जाने कहाँ गए वो लम्हें जो तेरे साथ बीता करते थे

वो लिखना मेरा कागज़ पे गज़लें
और कागज़ की तुम किश्ती बनाया करते थे
याद है मुझे वो अपनी हर इक बात
जिस बात पर तुम मुस्कराया करते थे

लौट आओ वापिस कि मुझे जरूरत है उस हाथ की
जिसकी अँगुलियों से तुम मेरे होंठ चूमा करते थे
बुला रही है तुमको वो मेरी गज़लें
जिन गज़लों को तुम गुनगुनाया करते थे

लौट आओ उन फूलों की खातिर
मेरी किताबों में जिन्हें तुम प्यार से सजाया करते थे
दे रही सदा अब उस दिल की धड़कन तुमको
जिस दिल को कभी तुम दिल में बसाया करते थे !!


मानव मेहता ‘मन’ 

Tuesday, February 28, 2017

नज़्म का ज़ायका





















बहुत देर हुई,
होंठों पे नज़्म का ज़ायका महसूस किए
ख़ामोशी कब्र सी ना जाने कब से बिखरी है..
रातें देर तक ऊँघती हैं,
पड़ी रहती है छत पर सितारे ओढ़े
मगर इन सितारों में भी अब कोई चेहरा नहीं बनता
कोई नज़्म कोई ख़याल दिल में नहीं आता |
दिन बूढ़ा सा खस्ता सी हालत में
आता है .. चला जाता है
मायूस सी सर्द हवाएं जर्द पत्तों को
उड़ा ले जाती है बहुत दूर ऐसे
कि शाखों पे भी अब कोई नहीं बसता |

मेरा ‘मन’ सिमट के रह गया है
एक छोटे से दायरे में
जैसे एक्वेरियम में मछलियाँ...
भागती हैं – दौड़ती हैं
और फिर सिमट जाती हैं खुद में
मेरा ‘मन’   ठीक वैसे सिमट गया है
अपने ही अंदर
ज़ज्बात और ख़यालात उतरते नहीं कागज़ पर
बहुत देर हुई –
होंठों पे नज़्म का ज़ायका महसूस किये ...!!

मानव ‘मन’


Tuesday, July 22, 2014

ख़ामोशी










ख़ामोशी
परत दर परत
जमती जाती है
एहसासों पर...

सन्नाटा लफ़्ज़ों पर
गिरफ्त बढ़ा है
लम्हा लम्हा

हमारे बीच की आवाजें
अब दफ़न हो रही हैं.......!!!!



मानव मेहता 'मन' 

Monday, January 06, 2014

दर्द-ए-जिंदगी












जिंदगी दर्द में दफ़न हो गई इक रात,
उदासी बिखर गई चाँदनी में घुल कर....!!
चाँद ने उगले दो आँसू,
ज़र्द साँसें भी फड़फड़ा कर बुझ गयी......!!

इस दफा चिता पर मेरे-
मेरी रूह भी जल उठेगी.........!!




मानव मेहता 'मन'  

Tuesday, November 19, 2013

जुगलबंदी.... :)

कल मैंने मेरी बड़ी बहन समान नीलीमा शर्मा जी के  इनबॉक्स में  कुछ लिखा  कि दीदी देखो कैसा लिखा  हम दोनों अक्सर इस तरह अपना लिखा एक दुसरे को दिखाते  रहते हैं फिर  क्या जुगलबंदी हुयी आपकी नजर पेश हैं ..............~~


तुमने सुना तो होगा
जब चलती हैं तेज़ हवाएं
फड़फड़ा उठता है
सोया हुआ शजर
बासी से कुछ मुरझाये हुए से पत्ते
छोड़ देते हैं साथ
दिये कई तोड़ देते हैं दम
जब चलती हैं तेज़ हवाएं
बर्बाद हो जाता है सब कुछ
इक रोज़ इक ऐसे ही
तेज़ हवा में
बुझ गया था -
मेरा भी इक रिश्ता....!!    मानव मेहता शिवी
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न तेज हवा चली थी /
न कोई तूफ़ान आया था /
न हमने  कोई आसमा सर पर उठाया था /
 हम जानते  थे ना /
हमारा रिश्ता नही पसंद आएगा /
हमारे घर के ठेकेदारों को /
जिनके लिय अपने वजूद  का होना लाजिमी था /
 हमारी कोमल भावनाओ से इतर /
और हम दोनों ने सिसक कर  /
भीतर भीतर चुपके से /
 तोड़ दिया था अपना सब कुछ /
बिना एक भी लफ्ज़ बोले /
मैंने तेरा पहना कुरता मुठी मैं दबा कर /
 तुमने मेरी लाल चुन्नी सितारों वाली /
जो आज भी सहेजी हैं दोनों ने /
अपने अपने कोने की अलमारी के /
भीतर वाले कोने में........... नीलिमा शर्मा निविया
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मुझे याद तो नहीं शोना
पर जब से तुम गयी हो
लगभग हर रात
अपनी अलमारी खोल कर
देखता हूँ उस लाल रंग के
सितारों वाले दुप्पट्टे को
जो तेरी इक आखरी सौगात
मेरे पास छोड़ गए थे तुम
तुम नहीं मगर तुम्हारा एहसास
आज भी उस दुप्पट्टे में
वाबस्ता है...
मैं आज भी इसमें लिपटी हुई
मेरी मोहब्बत को देखता हूँ...

मुझे याद तो नहीं शोना
पर जब से तुम गयी हो
ज़िन्दगी घुल सी गयी है लाल रंग में मेरी... Manav Shivi Mehta
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तुम्हारा वोह सफ़ेद कुरता
आज भी रखा हैं कोने में
अलमारी के
जहाँ मैं सहेजती हूँ यादे अपनी
और जब अकेली होती हूँ न
अपने इस कोहबर में ,
तो पहन कर वोह सफ़ेद कुरता
महसूस करती हूँ तुम्हे
अपने बहुत करीब
तुम्हारी आखिरी सफ़ेद निशानी
जो छीन कर ली थी मैंने तुमसे
उसमें वोह अहसास भी जुड़े हैं तेरे - मेरे
जो हमने जिए तो नही
फिर भी कई बार महसूस जरुर किये हैं 

 सुनो शोना
अब मेरी जिन्दगी  पहले जैसे  रंगीन नही रही
शांत रहना सीख लिया मैंने
तेरे कुरते के सफ़ेद रंग की तरह .................... नीलिमा  शर्मा

Friday, November 01, 2013

शौक

शौक...
बस शौक ही था तुम्हें
हवाओं पे पैर रख कर
आसमान पे चलने का...
तेज़ तेज़ क़दमों से
चल कर
जाने किस मंजिल
पर पहुँचना था तुम्हें...
तुम ऐसे उड़े
कि सब रिश्ते हवा हो गए...
गुजारी थी उम्र जिनके सहारे
और सहारा बनना था जिनका
इस उम्र में...
अभी तुम्हारी उम्र ही क्या थी
बस ये शौक
हवा से तेज़ दौड़ने का
तुम्हें जुदा कर गया खुद से...
ले गया बहुत दूर
तुम्हें तुम्हारे अपनों से.....!!


मानव मेहता 'मन' 
(दोस्त के cousin के शरीर को अभी अभी दाग दे कर आया... तेज़ बाइक और सामने से ट्रक... उम्र 17 साल)


Thursday, October 17, 2013

मनचाहे...ख़ामोश अक्षर













पंजाबी नज़्म और उसका हिंदी में अनुवाद...


ਤੇਰੀ ਖਾਮੋਸ਼ੀ ਦੇ ਇੱਕ ਇੱਕ ਅਖੱਰ
ਮੈਂਨੂੰ ਵਾਜਾਂ ਮਾਰਦੇ ਨੇ, ਬੁਲਾਓਂਦੇ ਨੇ
ਤੇ ਮੈਂ ਵੀ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ
ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੀ ਕਮਲੀ ਹੋਈ ਫਿਰਦੀ ਹਾਂ ...
ਰਾਤ ਦੀ ਕਾਲੀ ਚਾੱਦਰ ਉਤੇੱ
ਮੈਂ ਰੋਜ਼ ਬਿਛੌਂਦੀ ਹਾਂ ਇਹਨਾਂ ਅੱਖਰਾਂ ਨੂੰ
ਪੁਛੱਦੀ ਹਾਂ ਤੇਰਾ ਹਾਲ
ਕੁੱਝ ਅਪਣਾ ਸੁਨਾਨੀ ਹਾਂ ...
ਤੇ ਇਹ ਅੱਖਰ ਮੈਨੂੰ, ਮੇਰੀ ਬਾਂਹ ਫੜ ਕੇ
ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਨੇ ਦੂਰ ਅਜਿਹੇ ਅੰਬਰਾਂ ਚ
ਜਿਥੇ ਤੇਰਾ ਤੇ ਮੇਰਾ ਰਿਸ਼ਤਾ
ਮੇਰੀ ਸੋਚ ਦੇ ਮਾਫਿਕ ਮਿਲਦਾ ਏ ਮੈਨੂੰ ...
ਤੇ ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਇਹਨਾਂ ਅੱਖਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਸੁਨ ਲੈਨੀ ਹਾਂ
ਅਪਣਾ ਮਨਚਾਹਾ.....



तेरी ख़ामोशी के एक एक अक्षर
मुझे आवाज़ लगाते हैं, बुलाते हैं
और मैं भी इनके साथ
बातें करती पागल हुई फिरती हूँ
रात की काली चादर पर
मैं रोज़ बिछाती हूँ इन अक्षरों को
पूछती हूँ तेरा हाल
कुछ अपना सुनाती हूँ
और ये अक्षर मुझे मेरी बांह पकड़ कर
ले जाते हैं दूर ऐसे आसमान में
जहाँ तेरा और मेरा रिश्ता
मेरी सोच के मुताबिक मिलता है मुझे...
और मैं तेरे अक्षरों के साथ सुन लेती हूँ
अपना मनचाहा
.......!!




मानव मेहता 'मन'

Saturday, October 05, 2013

सागर की लहरें

हर बार
आती हुई लहर
मुझे छू कर
ले जाती है मुझसे
मेरा थोड़ा सा
हिस्सा_
दूर कहीं सागर में
छोड़ देती है...

कतरा कतरा
हर बार
यूँ ही बिखरते हुए
समा जाऊंगा इसमें!!
सारे का सारा...

और दूर
जहाँ मिल रहे है
सागर और आकाश
एक दूजे में....
मैं भी
वहीँ कहीं
हो जाऊंगा विलीन
....!


मानव मेहता 'मन'