Saturday, September 26, 2009

दीदार....



"करा दे 'यार', अपना 'दीदार',
'फिर इक बार मुझे,
अपनी 'सूरत' दिखा कर,
'मुझे' 'जीने' की 'इजाज़त' दे दे..."

आजकल.......



"बात करने में वो, 'इतराते' हैं आजकल,'
'नज़र' मिलाने से, 'घबराते' हैं आजकल,'
'न जाने अब क्या हो गया है उनको,'
'हर 'सच' से वो, 'कतराते' हैं आजकल......."


नाम....

"किस नाम से पुकारूं,
 'तुझको' अब मैं,

'पत्थर'
दिल कहूँ ,

या कहूँ
'बेवफा'...."

वफा का असर ..

"ये मेरी 'वफा' का असर है,
                                  या तेरी 'जफ़ा' का......
'जब भी देखो राह पर,
                                'अकेला' भटकता हूँ...."

आरजू

"काश किसी शाम, तुझे अपने आँगन में खडा पाऊं,
'तू हो सामने खड़ी, बस तुझे ही देखता जाऊं...'

'गुज़र जाए गर इस कदर, कई सदियाँ फिर भी,
'तेरे शबाब पर से मैं, न अपनी नज़र हटाऊं...'

'रहते हो खोये, ना जाने तुम किन ख्यालों में,
'तमन्ना है मेरी, की मैं भी तुम्हारे ख्यालों में आऊँ...'

'बढा कर प्यास मेरी, तुम छुडाना न दामन,
'दिल चाहे, की तेरे आँचल की पनाह पाऊँ....'

'क्यूँ करते हो तुम इस कदर, बुझी-बुझी सी बातें,
'तू कहे, तो तेरे दामन को, सितारों से सजाऊँ..."

कौन पहचानेगा तुझे...............???

"कौन है तेरा वहां, किस के पास जायेगा अब तू,
'कौन पहचानेगा तुझे, बस्ती में जो जाएगा अब तू....'

'वो तो बनते है तेरे सामने, तजाहुल-पेशगी*,
'बाद ए मौत ही उसका साथ, पायेगा अब तू....

'सुराब* न निकले, उनकी भी ये दोस्ती कहीं,
'दुआ कर ले खुदा से, वर्ना मर जाएगा अब तू.....'

'हर वक्त तो रहती है आँखों में, यार की गर्दे राह*,
'किस तरह प्यार उसको, दिखा पायेगा अब तू....'

'कब तक उठाये फिरेगा, तू ये बारे-मिन्नत*,
'कर दे वापिस इसको वरना थक जाएगा अब तू....'

'वो शख्स तो है जालिम और जां-गुसिल कब से,
'क्या उसका ये बेदाद*, सह पाएगा अब तू.....'

'न कर उम्मीद किसी से की कोई आएगा पास तेरे,
'इक खलिश* का ही हमराह बन कर, रह जाएगा अब तू...'"

 
 
 
 
*तजाहुल-पेशगी- जान बुझ कर अनजान बनना,
*सुराब- छलावा,
*गर्दे राह- रास्ते की धूल,
*बारे मिन्नत- एहसानों का बोझ,
*जां- गुसिल- प्राण घातक,
*बेदाद- अत्याचार,
*खलिश- चुभन,

Friday, September 25, 2009

दोस्त........


ज़िन्दगी में आते है कई मोड़ ऐसे,
जिन पर सिर्फ इक दोस्त दिखाई देता है...
चले जाते है बिना सोचे समझे उसकी तरफ,
और बाद में फिर दगा भी वही देता है...

आता है हमें.........


दिल क जख्मों को छुपाना आता है हमें,
उनकी बेवफाईयों को दबाना आता है हमें,
ये सब हो जाता है बड़ी आसानी से,
  क्योंकि अब भी मुस्कुराना आता है हमें...

क्या सुनना चाहोगे?


रोज कहते हो की कुछ सुना दो हमको,
क्या सुनना चाहोगे ये बता दो हमको....
ग़म ए दर्द सुनाएं या करे ख़ुशी का इज़हार,
क्यूंकि सब कुछ तो दिया है तुमने ही हमको......

Thursday, September 24, 2009

नहीं रहता ता-उम्र तक....


नहीं रहता ता-उम्र तक हमसफ़र कोई,
गर मालूम होता तो दिल को लुटाता न मैं.....
तरसना होगा मुझे बाद-ए-मौत भी दीदार को उनके,
खबर होती तो उनकी रह-गुजर में जाता न मैं........