Monday, March 02, 2020

किताबें धूल फांकती है शेल्फ पर















किताबें धूल फांकती है शेल्फ पर
अरसा हो गया है
उन्हें पढ़े हुए
मैं नहीं खोलता अब उनके वर्क –
कि अब उन लफ्ज़ों में
ठहरता नहीं है मन

रात जब मद्धम करके रौशनी को
अपनी टेबल पर बैठता हूँ
तो उन किताबों से खुद ब खुद निकल कर
आ बैठते हैं कुछ अल्फाज़ मेरे ज़ेहन में
बहुत शोर करती है
लफ्ज़ों की खनखनाहट
मगर जब इन्हें समेट कर
लिखना चाहूँ जो राइटिंग पैड पर
तो गायब हो जाते हैं अचानक ...

अब इनसे मेरा वास्ता नहीं रहा कोई
ना मैं अब इनके करीब जाता हूँ
ना ये मेरे करीब आते हैं |

अरसा हो गया
किताबें धूल फांकती है शेल्फ पर ....!!


~मानव ‘मन’ 

सिर्फ तेरा नाम














कल रात तेरे नाम एक कलाम लिखा
कागज कलम उठा करा इक पैगाम लिखा,
पहले अक्षर से आखिरी अक्षर तक
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम लिखा.....

ढूँढने निकले कि कहीं से कुछ अरमान मिले
तुझे देने को कहीं से कुछ सामान मिले,
मगर फूलों के गाँव से,चाँद की छाँव से
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम मिला.....

बहुत कोशिश की मैंने कि इक गजल बनाऊं
तेरे हुस्न के धागों से प्यार के मोती सजाऊं,
ढूँढा हर मंजर मे, लफ्जों के समंदर में
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम मिला....

तेरे नाम से ही शुरू हुई ये बंदगी मेरी
तेरे नाम पे ही मुकम्मल होगी जिंदगी मेरी
देखा जब कभी अपने हाथों की लकीरों में
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम दिखा......!!





मानव 'मन' 

वो अगर आज यहाँ होते


वो अगर आज यहाँ होते,
तो खुशियों से भरे आसमां होते....
कौन कहता फिर बेवफा उनको,
हम भी तो फिर बावफा होते......
पूरे होते हमारे सपने सभी,
नई उमंगों से भरे आशियाँ होते....
चलते जब साथ कदमों से कदम,
तो रास्ते मंजिलों के खुशनुमां होते.....
गुलाहे-रंग-रंग से भरा होता चमन मेरा
मुअत्तर हर-सू ये सभी बागवां होते....
बज्मे-अंजुम में कटती हमारी रातें सभी
और दिन भी सभी आराम-ए-जां होते....
रंग देते नई तमन्नायें उनकी मोहब्बत में,
कलम के कुछ और ही अंदाज-ए-बयाँ होते.....!!



गुलाहे-रंग-रंग  - रंग बिरंगे फूल
मुअत्तर   -  महकना
हर-सू      -  चरों तरफ
बज्मे-अंजुम    -  सितारों की सभा
आराम-ए-जां    -   सुखद



मानव 'मन'