Saturday, October 05, 2013

सागर की लहरें

हर बार
आती हुई लहर
मुझे छू कर
ले जाती है मुझसे
मेरा थोड़ा सा
हिस्सा_
दूर कहीं सागर में
छोड़ देती है...

कतरा कतरा
हर बार
यूँ ही बिखरते हुए
समा जाऊंगा इसमें!!
सारे का सारा...

और दूर
जहाँ मिल रहे है
सागर और आकाश
एक दूजे में....
मैं भी
वहीँ कहीं
हो जाऊंगा विलीन
....!


मानव मेहता 'मन' 


13 comments:

  1. नवरात्रि की शुभकामनायें आदरणीय -

    सागर की लहरें ललक, लहर लहर लहराय |
    जिए चार पल शान से, मनवांछित गति पाय ||

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    1. बहुत सुन्दर लिखा आपने रविकर जी।
      शुक्रिया।

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  2. आपका बहुत बहुत आभार रविकर जी।

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना....
    :-)

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  4. आपकी यह उत्कृष्ट रचना ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in पर कल दिनांक 6 अक्तूबर को लिंक की जा रही है .. कृपया पधारें ...
    साभार सूचनार्थ

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    1. शालिनी जी... आपका बहुत आभार...

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    latest post: कुछ एह्सासें !

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    1. कालीपद जी... धन्यवाद...

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  6. सुन्दर प्रस्तुति आभार नवरात्रि की शुभकामनायें-
    कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन

    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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    1. शुक्रिया मदन मोहन जी...

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  7. सागर की इन लहरों में रौशनी से मिलन की चाह ...
    लाजवाब शब्द सृजन है ...

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  8. ​लाजवाब शब्द संयोजन

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता