हर बार
आती हुई लहर
मुझे छू कर
ले जाती है मुझसे
मेरा थोड़ा सा
हिस्सा_
दूर कहीं सागर में
छोड़ देती है...
कतरा कतरा
हर बार
यूँ ही बिखरते हुए
समा जाऊंगा इसमें!!
सारे का सारा...
और दूर
जहाँ मिल रहे है
सागर और आकाश
एक दूजे में....
मैं भी
वहीँ कहीं
हो जाऊंगा विलीन....!
मानव मेहता 'मन'
नवरात्रि की शुभकामनायें आदरणीय -
ReplyDeleteसागर की लहरें ललक, लहर लहर लहराय |
जिए चार पल शान से, मनवांछित गति पाय ||
बहुत सुन्दर लिखा आपने रविकर जी।
Deleteशुक्रिया।
आपका बहुत बहुत आभार रविकर जी।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDelete:-)
शुक्रिया रीना जी।
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट रचना ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in पर कल दिनांक 6 अक्तूबर को लिंक की जा रही है .. कृपया पधारें ...
ReplyDeleteसाभार सूचनार्थ
शालिनी जी... आपका बहुत आभार...
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post: कुछ एह्सासें !
कालीपद जी... धन्यवाद...
Deleteसुन्दर प्रस्तुति आभार नवरात्रि की शुभकामनायें-
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
शुक्रिया मदन मोहन जी...
Deleteसागर की इन लहरों में रौशनी से मिलन की चाह ...
ReplyDeleteलाजवाब शब्द सृजन है ...
लाजवाब शब्द संयोजन
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