Friday, March 29, 2013

अनकहे लफ्ज़
















कुछ अनकहे लफ्ज़-
टांगे हैं तेरे नाम,
इक नज़्म की खूंटी पर...
और वो नज़्म-
तपती दोपहर में...
नंगे पाँव-
दौड़ जाती है तेरी तरफ ...!!

गर मिले वो तुझको,
तो उतार लेना वो लफ्ज़-
अपने जहन के किसी कोने में
महफूज कर लेना....!!

और मेरी उस नज़्म के पांव के छालों पर,
लगा देना तुम अपनी मोहब्बत का लेप.....!!



मानव मेहता 'मन' 

Wednesday, March 20, 2013

दर्द












कुछ रोज पहले ही तो-
दफ़नाया था तुझको...
मकान के पिछले लॉन में.....


मिट्टी की जगह डाले थे,
कुछ लम्हें अफसुर्दगी के-
और अपनी आँखों का खरा पानी भी-
छिड़का  था उस पर ...
और सबसे ऊपर अपने ज़ख्मों का-
बड़ा सा पत्थर भी रख छोड़ा था उस पर....

सोचा था जिंदगी अब से आसान गुजरेगी....
हुं.....!!!

वहम था मेरा.....
भला नाखूनों से भी माँस जुदा हुआ है कभी....

कल रात उस जगह-
इक पौधा उग आया है फिर से...
कल रात से दर्द अब फिर से मेरे साथ है.....!!!


:- मानव मेहता 'मन'

Sunday, March 10, 2013

तेरा एहसास















डूब  कर  तेरे  एहसास  के  समंदर  में 

मुझे तेरे प्यार का एक मोती मिल गया 

सेहरा-ए-बंजर  थी  ये  हस्ती  मेरी 


मिले तुम जीने का एक सबब मिल गया..!! 




मानव मेहता 'मन'

Friday, February 22, 2013

नया रिश्ता















तरो-ताज़ा लग रहा है आज ये मन मेरा,
जाड़ों की खिली धूप में नहा कर निकला हो जैसे...

जर्द पत्ते भी अब हरे हो गए हैं इसके,
टहनियों पर इसके खुशियों के फूल उग आये हैं...

बदला बदला सा लग रहा है आज हर मौसम,
इसकी दीवारों से दर्द के सीलन की महक हट गई है,
परदे भी कुछ उजले से नज़र आ रहें हैं मुझको...
और जो गम के काले साये बिखरे रहते थे हर तरफ,
जाने कहाँ इक ही लहजा में घूम गए हैं...

और जैसे किसी हांड़ी में रख दिए हों,
कुछ चावल पकने की खातिर-
ठीक वैसी ही महक इसके भीतर से आ रही है मुझको....

इसके भीतर कोई तो नई बात हुई है आज,
इसके भीतर इक ‘नया रिश्ता’ पक रहा है शायद......


मानव मेहता ‘मन’


Wednesday, February 13, 2013

तेरे लिए










जी चाहता है रंग दूँ सपनों को अपने,
हाथों  में  तेरे  हिना  भी  रंग  दूँ...


भर दूँ तेरी दुनिया खुशियों से हमदम,
आँचल  में  तेरे सितारे  भी  भर दूँ...

ना हो तेरी महफ़िल में पतझड़ का मौसम,
तेरे  चमन को हमदम  बहारों से भर दूँ...

तू  जो चले  मेरे जानिब  दो कदम,
इस जादा-ऐ-तलब को नज़ारों से भर दूँ... !!


मानव मेहता 'मन' 

Friday, February 08, 2013

वीरान-ए-बहार

Valentine Week Special :)










झुकी हुई पलकों से कुछ इशारे हो गए,
डूबते हुए नखुदा को सहारे हो गये...

उम्र भर चाहता रहा खुद को,
इक नज़र में गैर भी प्यारे हो गए...

नशा छाया तुम्हारा हम पे कुछ ऐसा,
बिन सोचे समझे हम तुम्हारे हो गए...

मुझे जब से फलक पर बिठा दिया है तुमने,
तबसे मेरे हमराह चाँद सितारे हो गए...

इक अदद से दिल मेरा सूना सा रहता था,
वीरानों में भी बहारों के नजारे हो गए....!!


Manav Mehta ‘मन’

Saturday, October 27, 2012

तेरे शब्द...



तेरे शब्द
चोट करते हैं
मुझ पर....

किसी लोहार के
हथोड़े कि मानिद...

मैं सोच रहा हूँ
आखिर
तुम मुझे __

किस शक्ल में
ढालना चाहती हो.....


Wednesday, August 08, 2012

रुखसत














इस वक्त यूँ लगता है कि सब कुछ मोहम्मल है
तू.... मैं..... और ये रब्त........ तेरा मेरा

ये हवाएं यूँ ही बेरंग चलती फिरती है रात भर
जाने कब रुकेगी,कहाँ थमेगी,कहाँ है इनका बसेरा...

अजीब से हालातों से गुजर रहा हूँ आजकल
खालीपन है आँखों में और अफसुर्दा है चेहरा.....

शाम ढल चुकी है अब जनाजा न उठा पाओगे तुम
अब तो मैं तभी रुखसत लूँगा जब होगा सवेरा....!! 


मानव मेहता 'मन'