Friday, February 08, 2013

वीरान-ए-बहार

Valentine Week Special :)










झुकी हुई पलकों से कुछ इशारे हो गए,
डूबते हुए नखुदा को सहारे हो गये...

उम्र भर चाहता रहा खुद को,
इक नज़र में गैर भी प्यारे हो गए...

नशा छाया तुम्हारा हम पे कुछ ऐसा,
बिन सोचे समझे हम तुम्हारे हो गए...

मुझे जब से फलक पर बिठा दिया है तुमने,
तबसे मेरे हमराह चाँद सितारे हो गए...

इक अदद से दिल मेरा सूना सा रहता था,
वीरानों में भी बहारों के नजारे हो गए....!!


Manav Mehta ‘मन’

Saturday, October 27, 2012

तेरे शब्द...



तेरे शब्द
चोट करते हैं
मुझ पर....

किसी लोहार के
हथोड़े कि मानिद...

मैं सोच रहा हूँ
आखिर
तुम मुझे __

किस शक्ल में
ढालना चाहती हो.....


Wednesday, August 08, 2012

रुखसत














इस वक्त यूँ लगता है कि सब कुछ मोहम्मल है
तू.... मैं..... और ये रब्त........ तेरा मेरा

ये हवाएं यूँ ही बेरंग चलती फिरती है रात भर
जाने कब रुकेगी,कहाँ थमेगी,कहाँ है इनका बसेरा...

अजीब से हालातों से गुजर रहा हूँ आजकल
खालीपन है आँखों में और अफसुर्दा है चेहरा.....

शाम ढल चुकी है अब जनाजा न उठा पाओगे तुम
अब तो मैं तभी रुखसत लूँगा जब होगा सवेरा....!! 


मानव मेहता 'मन' 

Sunday, July 22, 2012

नज़रों में अगर तू है














नज़रों में अगर तू है,तो फिर नज़ारा क्या है
सामने जब दरिया हो,तो फिर किनारा क्या है..?

साँस लेने दो मुझे दो घड़ी, दम तो लो
नहीं मालूम तुमको अभी,हमने देखा क्या है..?

अभी और भी ख़्वाब दबे हैं ,आँखों में
अभी तो एक ही टूटा है,तो रोता क्या है..?

ख़्यालों के आँगन में खिला था,फूल मोहब्बत का
अब जा के समझा कि हर-सू महकता क्या है..?

तुम थक गए हो तो लौट जाओ, अपने रस्ते
हमारा तो सर्वे-रवां है, हमारा क्या है..?

दिल टूटने की तो कभी आवाज़ नहीं आती
फिर ये शोर कैसा है,आखिर माज़रा क्या है..?


मानव मेहता 'मन' 

Sunday, May 13, 2012

रिश्ता.........




आओ दोनों लोहे की जंज़ीरों से बंध जायें...
दोनों सिरे मिलाकर एक जिंदा लगा दें,
सुना है कच्चे धागे का रिश्ता-
अक्सर टूट जाया करता है.......!!!

Tuesday, May 08, 2012

दर्द















वक्त को हथेली पर रख कर
ऊँगलियों पर लम्हें गिने हैं...
दर्द देता है हौले से दस्तक-
इन लम्हों के कई पोरों में बसा हुआ है वो....!!

ज़ब्त करती हैं जब पलकें,
किसी टूटे हुए ख्वाब को-
आँखों में दबोचती हैं
तब पिघलता नहीं है मोम-
बस टुकड़े चुभते हैं उस काँच के....!!

इन आँखों से अब पानी नहीं रिसता,
दर्द अब पत्थर हो चला है.....!!

Sunday, January 15, 2012

तेरी महक.......



















कुछ लफ्ज़ अपनी मोहब्बत के-
बिखेर दो मेरे आँगन....
इन हवाओं में घोल दो-
अपनी चाहत की नमी...!!
बरस जाओ बन के बादल
मेरे जिस्म-ओ-जां पर...
कि मेरी रूह का इक टुकड़ा भी प्यासा ना रहें...!!

उतर आओ सितारों के झीने से इक रोज,
और बाँट लो खुद को मेरी रगों में...
आहिस्ता आहिस्ता ;
पिघल जाओ बदन में मेरे-
कि ज़र्रे ज़र्रे से इसके सिर्फ तेरी महक आए....!!


                                   मानव 'मन' 

Saturday, November 26, 2011

एहसास ये तेरा मेरा.....















मुझसे रूठ कर जो जाओगे तो कहाँ जाओगे,

मेरे वजूद, मेरे एहसास को कैसे छुपाओगे....




मेरी यादें बेचैन कर देंगी तुमको,


महफ़िल में जो कभी खुद को तनहा पाओगे..




रुक जाएँगी सांसें, थम जाएगी धड़कन,


अचानक से मेरा नाम जो कभी गुनगुनाओगे...



छत पर टहलते हुए, तारों की छाँव में,

अपने अक्स की जगह सिर्फ  मुझको ही पाओगे....





                                                                     मानव 'मन' 

Sunday, September 25, 2011

'इक खलिश' का ही हमराह बन कर, रह जाएगा अब तू...











"कौन है तेरा वहां, किस के पास जायेगा अब तू,
 'कौन पहचानेगा तुझे, बस्ती में जो जाएगा अब तू....'

 'वो तो बनते है तेरे सामने, तजाहुल-पेशगी*,
 'बाद ए मौत ही उसका साथ, पायेगा अब तू...

'सुराब* न निकले, उनकी भी ये दोस्ती कहीं,
'दुआ कर ले खुदा से, वर्ना मर जाएगा अब तू.....'

'हर वक्त तो रहती है आँखों में, यार की गर्दे राह*,
'किस तरह प्यार उसको, दिखा पायेगा अब तू....'

'कब तक उठाये फिरेगा, तू ये बारे-मिन्नत*,
'कर दे वापिस इसको वरना थक जाएगा अब तू....'

'वो शख्स तो है जालिम और जां-गुसिल कब से,
'क्या उसका ये बेदाद*, सह पाएगा अब तू.....'

'न कर उम्मीद किसी से की कोई आएगा पास तेरे,
'इक खलिश* का ही हमराह बन कर, रह जाएगा अब तू...'"



                                                                           मानव मेहता 

*तजाहुल-पेशगी- जान बुझ कर अनजान बनना,
*सुराब- छलावा,
*गर्दे राह- रास्ते की धूल,
*बारे मिन्नत- एहसानों का बोझ,
*जां- गुसिल- प्राण घातक,
*बेदाद- अत्याचार,
*खलिश- चुभन,

Friday, September 16, 2011

चाक है सीना जख्मों से..........


"मैंने ज़िन्दगी को नहीं, ज़िन्दगी ने मुझे जिया लगता है,
एक अजीब सा खारापन, आँखों ने 'पिया' लगता है...

एक उम्र से मैं अपनी ज़िन्दगी की तलाश में हूँ,
ये जीवन तो जैसे, किसी से, उधार 'लिया' लगता है...

ख्वाहिशों  के फूल मुरझा गए मेरे जेहन के अन्दर ही,
चाक है सीना जख्मों से, फिर भी 'सिया' लगता है...

अंधेरापन ही मेरी ज़िन्दगी को रास आ गया है शायद,
मेरी नज़रों को चुभता हुआ सा, अब हर 'दिया' लगता है..."

       
                                                                              मानव मेहता