Sunday, June 12, 2011

ख़ामोशी.............



ख़ामोशी.............
लम्बी ख़ामोशी................ 
चलो अब इसका मज़ा भी चख लें.............. 
तुझसे होते हुए कई शब्दों को सुना मैंने ,
कुछ शहद की तरह मीठे थे
और
कुछ नीम की तरह कडवे............
कुछ में तेरे प्यार की खुशबू महकती थी
तो कुछ यूँ लगता था
जैसे कोई अजनबी ने राह चलते हुए पुकारा हो ..........
कुछ को समझ पाया
और कुछ उड़ते गए यूँ ही हवा में.........
शायद यही गलती हुई मुझसे...........

शायद उनको भी समझना जरुरी था........... 
पर...............
अब जो हालात बन चुके हैं
दरम्यान अपने
शायद उन्ही शब्दों का नतीजा हैं..............

अब केवल ख़ामोशी सुनती है दोनों तरफ......... 
अब शब्द गुफ्तगू करते नहीं आपस में.............

                                                                    
                                                                   :-Manav Mehta

Wednesday, June 01, 2011

तेरा वजूद


"तेरा वजूद है कायम मेरे दिल में उस इक बूँद की तरह,
जो गिर कर सीप में इक दिन मोती बन गयी....."
 
 

Saturday, May 21, 2011

मौसम संग बदलते रिश्ते...

















कौन चलता है ताउम्र किसी के साथ
साँसें भी थम जाती हैं धड़कन रूक जाने के बाद
तुमसे नहीं गिला कोई जो किया अच्छा किया
रिश्ते बदल जाते हैं अकसर मौसम बदल जाने के बाद.......


                           मानव मेहता 

Tuesday, May 10, 2011

चन्दा मेरे सुन ज़रा




बादलों की ओट से
निहारता है
चन्दा
जब तेरी छत पर
सिहरन सी
दौड़ जाती है
तन बदन में
चान्दनी की ठंडक
जब
छू सी जाती है
तेरी आँखों को
मेरे लबों की
खुशबु
तेरी आँखों को
महका सी जाती है....
ये हवा की
झीनी चादर
जब उड़ा जाती है
तेरे बालों को
मेरे हाथों की
नर्मी
तेरे सर को
सहला सी जाती है........


बादल ढक लेता है
जब
चन्दा को
अपने आगोश में
मेरी साँसों की
गर्मी
तेरे लबों को
गरमाहट दे जाती है....
ओ चन्दा मेरे सुन ज़रा
तेरी हर धड़कन में
अब
मेरी ही आहट आती है......
तेरी हर धड़कन में
अब
मेरी ही आहट आती है...........!!



                                                                           :-मानव मेहता  

Monday, April 25, 2011

किस ओर की अब राह लूँ मैं.........

किस ओर की अब राह लूँ मैं,
किस ओर मंजिल की डगर है,
हूँ खड़ा मैं सोचता पथ पर,
किस ओर जाऊं हर ओर तिमिर है...
इन्हीं अंधेरों में डूब गयी हर चाह मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी....


स्वप्न मेरे खो गये सब,
खो गयी सारी दिशायें,
मूक बन कर रह गयी अब,
मेरी सारी अभिलाषाएं....
गूंजती है उर में अब तो आह मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी........




फिर भी न जाने क्यूँ ह्रदय की,
डोर अब तक चल रही,
आँधियों के बीच में भी
किस तरह इक शम्मा जल रही,
जल चुकी है धूप में अब तो सांस मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी....


थक गया हूँ पर न जाने-
और कितना अभी चलना होगा,
इन पथरीले रास्तों पर,
और किता संभलना होगा,
गिरते-पड़ते निकल चली है जान मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी.......

Friday, April 15, 2011

आखिरी कलाम- बेबस ज़िन्दगी








ज़िन्दगी बेबस है इन ग़मगीन हालातों में,
उम्मीद का कोई सूरज नया उगा ले....
मेरी दुआएं कबूल हो ये मुमकीन नहीं लगता,
तू अपने लिए आशियाना कोई और नया बना ले...

ये चाहत के सपने, ये सपनों की बातें,
सपनों से बढ़ कर नहीं कोई अपना,
माना कि मुमकिन नहीं अपना मिलना,
मगर कोई ऐसा इक सपना तो सजा ले....


चला जाऊँगा दूर बहुत दूर इस जहाँ से,
तेरा दिल दुखाने न आऊंगा फिर से,
मगर जाते जाते ये चाहत है दिल की,
कि रूठे हुए को इक बार तो मना ले.....


है अलविदा दोस्तों, मुझे माफ़ करना,
अगर किसी को सताया हो मैंने,
पेश-ए-खिदमत है तुम्हारे आखिरी  कलाम मेरा,
है दुआ अब खुदा से कि वो मुझको उठा ले...


है दुआ अब खुदा से कि वो मुझको उठा ले...
है दुआ अब खुदा से कि वो मुझको उठा ले...






:-manav mehta


Saaransh-ek-ant.blogspot.com




Saturday, March 26, 2011

प्यार का आलम











चाँद के चेहरे से बदली जो हट गयी,

रात सारी फिर आँखों में कट गयी..


छूना चाहा जब तेरी उड़ती हुई खुशबू को,
सांसें मेरी तेरी साँसों से लिपट गयी..

तुमने छुआ तो रक्स कर उठा बदन मेरा,
मायूसी सारी उम्र की इक पल में छट गयी..

बंद होते खुलते हुए तेरे पलकों के दरम्यान,
ए जाने वफ़ा, मेरी कायनात सिमट गयी...




   मानव मेहता 


Wednesday, February 23, 2011

रिश्ते की सच्चाई..........

तुम हो अगर  और मैं भी हूँ,
फिर भी लगती  तन्हाई है..
सच मानो ! दोस्त मेरे
हमारे रिश्ते की रुसवाई 
                 चंद लफ्ज़ भर ना पाए जिसे
                  ये कैसी बीच में  खाई है..
                                तुम दूर हो या पास मेरे
                                बतला दो क्या सच्चाई है ................!! 

Saturday, February 12, 2011

तेरा एहसास















तू दूर होकर भी हर पल मेरे पास है
जाने क्यूँ आज फिर भी तेरा एहसास है
टूट चुके हैं जब सब तिलिस्म इस बन्धन के
तेरी तस्वीर फिर भी लगती क्यूँ खास है.....

Thursday, December 16, 2010




किसी दिन तो मेरे हाथों को तेरे हाथों का एहसास हो,
किसी दिन तो ऐसा हो की सिर्फ तू ही मेरे पास हो...
फिर उस वक़्त बताऊँ तुम्हे की इस 'मन' के मन में क्या है,
तुम कितने मेरे अपने हो, तुम कितने मेरे ख़ास हो...