किस ओर की अब राह लूँ मैं,
किस ओर मंजिल की डगर है,
हूँ खड़ा मैं सोचता पथ पर,किस ओर मंजिल की डगर है,
किस ओर जाऊं हर ओर तिमिर है...
इन्हीं अंधेरों में डूब गयी हर चाह मेरी,किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी....
स्वप्न मेरे खो गये सब,
खो गयी सारी दिशायें,
मूक बन कर रह गयी अब,
मेरी सारी अभिलाषाएं....
गूंजती है उर में अब तो आह मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी........
फिर भी न जाने क्यूँ ह्रदय की,
डोर अब तक चल रही,
आँधियों के बीच में भी
किस तरह इक शम्मा जल रही,
जल चुकी है धूप में अब तो सांस मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी....
थक गया हूँ पर न जाने-
और कितना अभी चलना होगा,
इन पथरीले रास्तों पर,
और किता संभलना होगा,
गिरते-पड़ते निकल चली है जान मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी.......