Friday, July 30, 2010

दोस्ती के नाम.......
















बड़ा प्यारा हमने तुमसे ये रिश्ता अजीब रखा है,
सभी दोस्तों से तुमको, हद से ज्यादा अज़ीज़ रखा है..

महरबानी जो तुमने कबूल की है दोस्ती मेरी,
शुक्रिया तेरा जो मुझे अपने दिल के करीब रखा है..

ये मरासिम रहे बरकरार ये तमन्ना है मेरी,
तेरा नाम आज से हमने अपना नसीब रखा है..

ये दोस्ती का शजर यूँही फलता रहे उम्र भर,
इस पौधे का हमने अपने हाथों से बीज रखा है..

है तुम पर नहीं कोई शक, फिर भी दिल घबराता है,
शायद इसने भी दुनियादारी से कुछ सीख रखा है..

न जाना मुझे छोड़ कर मझधार में ए दोस्त,
उड़ जाएगा वो परिंदा, जो मुट्ठी में भींच रखा है...

Sunday, July 11, 2010

खबर नहीं की खुदी क्या है, बेखुदी क्या है

खबर नहीं की खुदी क्या है, बेखुदी क्या है,
यहाँ तो आलम है की नहीं मालूम, की आदमी क्या है ?

चढ़ा रखे है यहाँ हर चहेरे में, सौ सौ नकाब,
उतार रखी है सभी शर्म-औ-हया; ये ज़िन्दगी क्या है ?

गर वफ़ा का वजूद है, अब भी दुनिया में कायम,
तो नज़र आती है जो जहाँ में, ये दुश्मनी क्या है ?

बह रहा है 'चश्म ऐ अश्क' ना जाने कब से मेरा,
फिर भी दिल में बसी, ये 'तिशनाकामी' क्या है ?

ये 'मुंसिफ' ये 'इमाम' है अपनी जगह दुरुस्त मगर,
हर बात पर मेरी उनकी, ये 'नुक्ता चीं' क्या है ?

हम दूर ही भले, इस दुनिया के 'रोज़गार' से अकेले,
डूब जाते गर मालूम होता; ये 'बहरे हस्ती' क्या है ?


['चश्म ऐ अश्क'- aansuon ka jharna]
['तिशनाकामी' - atyant pyass]
['नुक्ता चीं' - meen mekh nikalna]
['रोज़गार'- duniya-daari]
['बहरे हस्ती' -zindagi ka samundar]

Friday, April 23, 2010

ਦਰਦ ਕਾਫੀ ਹੈ ਦਿਲ ਵਿਚ ਹੰਜੂ ਬਹਾਉਣ ਲਈ,
ਹੰਜੂ ਕਾਫੀ ਨੇ ਇਕ ਦਰਿਯਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ..
ਛਡ ਕੇ ਤੁਰ ਗਯਾ ਮੇਰਾ ਮਹਿਯਾ ਜਦੋਂ ਦਾ ਮੈਨੂ,
ਬਸ ਓਹਦੀ ਯਾਦ ਹੀ ਕਾਫੀ ਹੈ ਦਿਲ ਧੜ੍ਕਾਉਣ ਲਈ....



dard kaafi hai dil vich hanju bahaun lai,
hanju kaafi ne ik dariya banaun lai..
chad ke tur gya mera mahiya jadon da mainu,
bas ohdi yaad hi kafi hai dil dhadkaun lai...

Sunday, March 21, 2010

ਸਾਡੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਵਸਦੇ ਹੁੰਦੇ ਸੀ

ਸਾਡੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਵਸਦੇ ਹੁੰਦੇ ਸੀ, ਹੁਣ ਕਿਥੇ ਡੇਰਾ ਲਾਯਾ ਏ,
ਸਾਡਾ ਪ੍ਯਾਰ ਤੂੰ ਬੇਸ਼ਕ, ਬੇਦਰਦੇ, ਬੇਕਦਰੇ ਜਾਣ ਗਵਾਯਾ ਏ...


ਤੂੰ ਭਾਵੇਂ ਸਾਥੋਂ ਵਿਛੜ ਗਯੀਂ ਏ, ਪਰ ਦਿਲ ਚੋਣ ਤੇਰੀ ਯਾਦ ਨੀ ਜਾਣੀ,
ਤੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਨ, ਸਾਹਾਂ ਦੇ ਵਾਂਗ ਵਸਾਯਾ ਏ...


ਤੂੰ ਤੁਰ ਚਲੀ ਏ ਕਹਿ ਕੇ ਇਨਾ, ਨਾ ਮੇਰੇ ਰਾਹੇਂ ਪੈ ਜਾਵੀਂ,
ਹੁਣ ਕੌਣ ਦਸੇ ਇੰਨਾ ਪੈਰਾਂ ਨੂੰ, ਜਿੰਨਾ ਤੇਰਾ ਰਾਹ ਧਯਾਯਾ ਏ...


ਤੂੰ ਇੰਜ ਨਾ ਸੋਚੀਂ ਤੈਥੋਂ ਵਿਛੜ ਕੇ, ਅੱਸੀ ਕੱਲੇ ਰਹਿ ਜਾਣੇ,
ਤੇਰੇ ਦਿੱਤੇ ਹੋਆਏ ਗਮਾਂ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਲੜ ਬਨਵਾਯਾ ਏ...


ਹੁਣ ਸਾਡੇ ਰਿਸ਼ਤੇ ਦੇ ਵਿਚ ਅੜੀਏ, ਬਚਨ ਜੋਗ ਕੁਜ ਰਿਹਾ ਨਹੀ,
ਪਰ ਕਿਵੇਂ ਮਾਰ ਮੁੱਕਾ ਦੇਈਏ, ਜਿੰਨੂੰ ਜਾਨੋਂ ਤੋੜ ਨਿਭਾਯਾ ਏ...


By:- manav mehta :-)

Sunday, December 20, 2009

तुमको चाहा है इक खुदा की तरह


"तुमको चाहा है इक खुदा की तरह,
'बड़ी मासूम हो दुआ की तरह..

'तुझे देखूं तो लगता है,
'जिस्म जैसे नूरे-खुदा की तरह...

'मुझसे रूठ कर जो जाओगे,
'ज़िन्दगी होगी इक सज़ा की तरह...

'बस तेरा नाम ही मेरा हांसिल है,
'रच गया है हाथों पे हिना की तरह...

'हमने देखा है वक़्त ऐसा भी,
'दोस्त हो जाते हैं बेवफा की तरह...

'जिधर भी जाऊं हर तरफ है वीरानी,
'सुना-सुना है दिल आसमाँ की तरह...


by:- manav mehta

Monday, October 26, 2009

मरासिम....


"दर्द आँखों में छलक जाए, तो छुपायें कैसे,
'वो जो अपने थे, उन्हें अपना बनाएं कैसे...'


'दर्द' मिलता है कभी 'हवाओं' से, तो कभी 'बारिश' से,
'साथ बीता हुआ वो 'सावन', हम भुलाएँ कैसे....'


'कभी गुज़री थी 'ज़िन्दगी', तेरे 'पहलु' में 'जन्नत' की तरह,
'अब फिर से ये 'ज़िन्दगी', 'जन्नत' बनाएं कैसे....'


'तुम तो चले गए, मुझसे 'बेसबब' 'रूठ' कर,
'अब वापिस तुम्हे अपनी 'ज़िन्दगी' में, बुलाएं कैसे....


'कहते थे तुम कभी जो 'आइना' मुझको,
'अब इस 'आईने' में तुम्हे, तुम्हारी 'शकल' दिखाए कैसे...'


'दे रही हैं 'सदाएँ' आज भी इस 'दिल' की 'धड़कन' तुमको,
'पर सोचते हैं तुम्हे ये 'आवाज', सुनाएँ कैसे...'


'इक 'भरम' पाला है मैंने, मेरे 'जहन' के कोने में,
'बरसों के ये 'मरासिम', इक पल में हम मिटायें कैसे...."


"लहरों को 'चकनाचूर' होते
देखा है अक्सर 'चट्टानों' से,
मुझे मालूम न था की इक दिन-
मेरे भी 'सपने'-
इसी तरेह चकनाचूर होकर 'बिखर' जायेंगे.....


मैंने तो अपने आप को समझाया,
की अब ये 'सपने',
कभी 'साकार' न होंगे,

पर ये 'कमबख्त' 'दिल' कहता है की-
 कभी न कभी आकर,
'वो' मेरे 'टूटे' हुए 'सपनों' को,
'नया रूप' देंगे..






"जब भी सुलझाना चाहा, ज़िन्दगी के सवालों को मैंने,
हर इक सवाल में ज़िन्दगी मेरी उलझती चली गयी..."




"अब तो हर तरफ तन्हाई ही दिखती है,
चले गए हैं सब न जाने कहाँ छोड़ कर मुझे...."

Wednesday, October 14, 2009

तेरे घर की 'दिवाली'


"तुम आये हो न, 'हिज्र' के दिन ढले हैं,'
इस बार तो 'अश्कों' के ही, 'अलाव' जले हैं...'


'आओगे तुम कभी, इस 'राह' पर 'हमसे' 'मिलने,
'आस में इसी 'मोड़' पर, कितने ही 'चिराग' जले हैं...'


'अजीब रंग में, अब के 'बहार' गुजरी है,
'न मिले हो तुम हमसे, न 'गुलाब' खिले हैं...'


'किस-किस 'ख्वाहिश' को, पूरा करेंगे हम अकेले,
'पलकों में तो अपने, ढेरों ही ख्वाब पले हैं...'


'जब भी चाह डूबना, खुशियों के 'समन्दर' में,
'हर बार तो हमें 'दर्द' के, 'सैलाब' मिले हैं...'


'इस बार तेरे 'घर' की 'दिवाली', न जाने कैसी होगी ?
'अपने 'घर' तो 'अँधेरा', सिर्फ 'चिराग' तले है..."