Friday, April 23, 2010

ਦਰਦ ਕਾਫੀ ਹੈ ਦਿਲ ਵਿਚ ਹੰਜੂ ਬਹਾਉਣ ਲਈ,
ਹੰਜੂ ਕਾਫੀ ਨੇ ਇਕ ਦਰਿਯਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ..
ਛਡ ਕੇ ਤੁਰ ਗਯਾ ਮੇਰਾ ਮਹਿਯਾ ਜਦੋਂ ਦਾ ਮੈਨੂ,
ਬਸ ਓਹਦੀ ਯਾਦ ਹੀ ਕਾਫੀ ਹੈ ਦਿਲ ਧੜ੍ਕਾਉਣ ਲਈ....



dard kaafi hai dil vich hanju bahaun lai,
hanju kaafi ne ik dariya banaun lai..
chad ke tur gya mera mahiya jadon da mainu,
bas ohdi yaad hi kafi hai dil dhadkaun lai...

Sunday, March 21, 2010

ਸਾਡੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਵਸਦੇ ਹੁੰਦੇ ਸੀ

ਸਾਡੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਵਸਦੇ ਹੁੰਦੇ ਸੀ, ਹੁਣ ਕਿਥੇ ਡੇਰਾ ਲਾਯਾ ਏ,
ਸਾਡਾ ਪ੍ਯਾਰ ਤੂੰ ਬੇਸ਼ਕ, ਬੇਦਰਦੇ, ਬੇਕਦਰੇ ਜਾਣ ਗਵਾਯਾ ਏ...


ਤੂੰ ਭਾਵੇਂ ਸਾਥੋਂ ਵਿਛੜ ਗਯੀਂ ਏ, ਪਰ ਦਿਲ ਚੋਣ ਤੇਰੀ ਯਾਦ ਨੀ ਜਾਣੀ,
ਤੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਨ, ਸਾਹਾਂ ਦੇ ਵਾਂਗ ਵਸਾਯਾ ਏ...


ਤੂੰ ਤੁਰ ਚਲੀ ਏ ਕਹਿ ਕੇ ਇਨਾ, ਨਾ ਮੇਰੇ ਰਾਹੇਂ ਪੈ ਜਾਵੀਂ,
ਹੁਣ ਕੌਣ ਦਸੇ ਇੰਨਾ ਪੈਰਾਂ ਨੂੰ, ਜਿੰਨਾ ਤੇਰਾ ਰਾਹ ਧਯਾਯਾ ਏ...


ਤੂੰ ਇੰਜ ਨਾ ਸੋਚੀਂ ਤੈਥੋਂ ਵਿਛੜ ਕੇ, ਅੱਸੀ ਕੱਲੇ ਰਹਿ ਜਾਣੇ,
ਤੇਰੇ ਦਿੱਤੇ ਹੋਆਏ ਗਮਾਂ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਲੜ ਬਨਵਾਯਾ ਏ...


ਹੁਣ ਸਾਡੇ ਰਿਸ਼ਤੇ ਦੇ ਵਿਚ ਅੜੀਏ, ਬਚਨ ਜੋਗ ਕੁਜ ਰਿਹਾ ਨਹੀ,
ਪਰ ਕਿਵੇਂ ਮਾਰ ਮੁੱਕਾ ਦੇਈਏ, ਜਿੰਨੂੰ ਜਾਨੋਂ ਤੋੜ ਨਿਭਾਯਾ ਏ...


By:- manav mehta :-)

Sunday, December 20, 2009

तुमको चाहा है इक खुदा की तरह


"तुमको चाहा है इक खुदा की तरह,
'बड़ी मासूम हो दुआ की तरह..

'तुझे देखूं तो लगता है,
'जिस्म जैसे नूरे-खुदा की तरह...

'मुझसे रूठ कर जो जाओगे,
'ज़िन्दगी होगी इक सज़ा की तरह...

'बस तेरा नाम ही मेरा हांसिल है,
'रच गया है हाथों पे हिना की तरह...

'हमने देखा है वक़्त ऐसा भी,
'दोस्त हो जाते हैं बेवफा की तरह...

'जिधर भी जाऊं हर तरफ है वीरानी,
'सुना-सुना है दिल आसमाँ की तरह...


by:- manav mehta

Monday, October 26, 2009

मरासिम....


"दर्द आँखों में छलक जाए, तो छुपायें कैसे,
'वो जो अपने थे, उन्हें अपना बनाएं कैसे...'


'दर्द' मिलता है कभी 'हवाओं' से, तो कभी 'बारिश' से,
'साथ बीता हुआ वो 'सावन', हम भुलाएँ कैसे....'


'कभी गुज़री थी 'ज़िन्दगी', तेरे 'पहलु' में 'जन्नत' की तरह,
'अब फिर से ये 'ज़िन्दगी', 'जन्नत' बनाएं कैसे....'


'तुम तो चले गए, मुझसे 'बेसबब' 'रूठ' कर,
'अब वापिस तुम्हे अपनी 'ज़िन्दगी' में, बुलाएं कैसे....


'कहते थे तुम कभी जो 'आइना' मुझको,
'अब इस 'आईने' में तुम्हे, तुम्हारी 'शकल' दिखाए कैसे...'


'दे रही हैं 'सदाएँ' आज भी इस 'दिल' की 'धड़कन' तुमको,
'पर सोचते हैं तुम्हे ये 'आवाज', सुनाएँ कैसे...'


'इक 'भरम' पाला है मैंने, मेरे 'जहन' के कोने में,
'बरसों के ये 'मरासिम', इक पल में हम मिटायें कैसे...."


"लहरों को 'चकनाचूर' होते
देखा है अक्सर 'चट्टानों' से,
मुझे मालूम न था की इक दिन-
मेरे भी 'सपने'-
इसी तरेह चकनाचूर होकर 'बिखर' जायेंगे.....


मैंने तो अपने आप को समझाया,
की अब ये 'सपने',
कभी 'साकार' न होंगे,

पर ये 'कमबख्त' 'दिल' कहता है की-
 कभी न कभी आकर,
'वो' मेरे 'टूटे' हुए 'सपनों' को,
'नया रूप' देंगे..






"जब भी सुलझाना चाहा, ज़िन्दगी के सवालों को मैंने,
हर इक सवाल में ज़िन्दगी मेरी उलझती चली गयी..."




"अब तो हर तरफ तन्हाई ही दिखती है,
चले गए हैं सब न जाने कहाँ छोड़ कर मुझे...."

Wednesday, October 14, 2009

तेरे घर की 'दिवाली'


"तुम आये हो न, 'हिज्र' के दिन ढले हैं,'
इस बार तो 'अश्कों' के ही, 'अलाव' जले हैं...'


'आओगे तुम कभी, इस 'राह' पर 'हमसे' 'मिलने,
'आस में इसी 'मोड़' पर, कितने ही 'चिराग' जले हैं...'


'अजीब रंग में, अब के 'बहार' गुजरी है,
'न मिले हो तुम हमसे, न 'गुलाब' खिले हैं...'


'किस-किस 'ख्वाहिश' को, पूरा करेंगे हम अकेले,
'पलकों में तो अपने, ढेरों ही ख्वाब पले हैं...'


'जब भी चाह डूबना, खुशियों के 'समन्दर' में,
'हर बार तो हमें 'दर्द' के, 'सैलाब' मिले हैं...'


'इस बार तेरे 'घर' की 'दिवाली', न जाने कैसी होगी ?
'अपने 'घर' तो 'अँधेरा', सिर्फ 'चिराग' तले है..."


Saturday, October 10, 2009


"क्या क्या न सोचा था हमने,
की इस तरेह से ज़िन्दगी बिताएंगे,
पर मालूम न था हमें की
अगले ही मोड़ पर
अपनी ज़िन्दगी से ही धोखा खायेंगे....."



written by:- Dinky Mehta

Wednesday, September 30, 2009

तेरी ओर कौन सी डगर जाती है...


"नींद की चादर कभी खुलती नहीं, और रात गुज़र जाती है,
'तेरी तस्वीर देखते-देखते, मेरी तकदीर संवर जाती है...'

'कहने को तुम दूर हो मगर, पर 'दूर' कभी हुए नहीं हमसे,
'दिखते' हो तुम हर जगह, जहाँ कही ये 'नज़र' जाती है...'

'दिन भर तेरी यादों की, 'धुप' में जला करते हैं,
'शाम ढलते ही तेरी 'तन्हाई', दिल में उतर जाती है...'

'तुम भूल गए हो शायद, वो अपने 'वादे' दोस्ती के,
'मेरी 'खामियां' भी अब तुमको, 'गुनाह' नज़र आती है...'

'अगरचे' इस बार 'बिछडे', तो शायद ही मिल पायेंगे,
'इसी सोच पर अक्सर,मेरी 'धड़कन' ठहर जाती है...'

'कब 'मिलोगे हमसे ऐ 'दोस्त', उसी 'शक्ल' में वापिस,
'जिस 'सूरत' में तेरी 'दोस्ती' मुझे, 'जन्नत' सी नज़र आती है...'

'वही 'गली' है, वही 'मकान' है, वही 'शहर' है तेरा,
'मगर भूल गया हूँ तेरी ओर, कौन सी डगर जाती है..."