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Monday, March 02, 2020

सिर्फ तेरा नाम














कल रात तेरे नाम एक कलाम लिखा
कागज कलम उठा करा इक पैगाम लिखा,
पहले अक्षर से आखिरी अक्षर तक
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम लिखा.....

ढूँढने निकले कि कहीं से कुछ अरमान मिले
तुझे देने को कहीं से कुछ सामान मिले,
मगर फूलों के गाँव से,चाँद की छाँव से
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम मिला.....

बहुत कोशिश की मैंने कि इक गजल बनाऊं
तेरे हुस्न के धागों से प्यार के मोती सजाऊं,
ढूँढा हर मंजर मे, लफ्जों के समंदर में
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम मिला....

तेरे नाम से ही शुरू हुई ये बंदगी मेरी
तेरे नाम पे ही मुकम्मल होगी जिंदगी मेरी
देखा जब कभी अपने हाथों की लकीरों में
तेरा नाम, तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम दिखा......!!





मानव 'मन' 

Wednesday, April 10, 2013

तेरा नाम





शाम ढली तो लेम्प के इर्द-गिर्द
कुछ अल्फाज़ भिन-भिनाने लगे.......
‘टेबल’ के ऊपर रखे मेरे ‘राईटिंग पेड’ के ऊपर-
उतर जाने को बेचैन थे सभी ......

कलम उठाई तो गुन-गुनाई एक नज़्म-
मूँद ली आँखें दो पल के लिए उसको सुनने की खातिर
हुबहू मिलती थी उससे –
एक अरसा पहले जिसे मैंने सुना था कभी ....

आँख खोली तो देखा –
कुछ हर्फ़ लिखे थे सफ्हे पर ...
महक रहे थे तेरा नाम बन कर
चमक रहे थे ठीक उसी तरह –
काली चादर पर आसमान की –
चंद मोती चमकते हैं जैसे ......

तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम ना रह कर –
एक मुकम्मल नज़्म बन गई है देखो .....

इससे बेहतर कोई नज़्म ना सुनी कभी
ना लिखी कभी ....... !!

मानव मेहता 'मन'