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Sunday, September 25, 2011

'इक खलिश' का ही हमराह बन कर, रह जाएगा अब तू...











"कौन है तेरा वहां, किस के पास जायेगा अब तू,
 'कौन पहचानेगा तुझे, बस्ती में जो जाएगा अब तू....'

 'वो तो बनते है तेरे सामने, तजाहुल-पेशगी*,
 'बाद ए मौत ही उसका साथ, पायेगा अब तू...

'सुराब* न निकले, उनकी भी ये दोस्ती कहीं,
'दुआ कर ले खुदा से, वर्ना मर जाएगा अब तू.....'

'हर वक्त तो रहती है आँखों में, यार की गर्दे राह*,
'किस तरह प्यार उसको, दिखा पायेगा अब तू....'

'कब तक उठाये फिरेगा, तू ये बारे-मिन्नत*,
'कर दे वापिस इसको वरना थक जाएगा अब तू....'

'वो शख्स तो है जालिम और जां-गुसिल कब से,
'क्या उसका ये बेदाद*, सह पाएगा अब तू.....'

'न कर उम्मीद किसी से की कोई आएगा पास तेरे,
'इक खलिश* का ही हमराह बन कर, रह जाएगा अब तू...'"



                                                                           मानव मेहता 

*तजाहुल-पेशगी- जान बुझ कर अनजान बनना,
*सुराब- छलावा,
*गर्दे राह- रास्ते की धूल,
*बारे मिन्नत- एहसानों का बोझ,
*जां- गुसिल- प्राण घातक,
*बेदाद- अत्याचार,
*खलिश- चुभन,

Friday, September 04, 2009

नई दोस्त

क्या मेरी 'नयी दोस्त' से मिलोगे?
एक ऐसी दोस्त; जो मेरे, चोबिसों घंटे साथ रहती है...
हर पल, हर जगह,
मेरे साथ चलती है..
जहाँ कहीं भी मैं 'चलता' हूँ,
जहाँ कहीं भी मैं 'रुकता' हूँ-
एक छोटे से 'लम्हे' के लिए भी-
मुझसे 'जुदा' नहीं होती..
'जीवन संगिनी' की तरह मेरे साथ,
कदम से कदम मिला कर चलती है,
उसका नाम है--
"घुटन"
 
यह घुटन है रूप;  'अकेलेपन' का....
यह घुटन है रूप;  'तन्हाई' का....
यह घुटन है रूप;  उस 'याद' का-
जो तुम मुझे दे कर चले गए हो....
 
'सबा' ;  तुम तो चले गए हो 'अकेले',
मगर मुझे छोड़ गए हो,
 इस नए साथी,
 इस  नए  'हमसफ़र'  के साथ.....
 
 'घुटन',  'घुटन',  'घुटन'........
और सिर्फ  'घुटन'-----
एक अजीब सा आलम है-- 
इस 'घुटन' का....
तलाश करता हूँ -
इस 'आलम' में खुद को...
खोजता हूँ अपने वजूद को...
ढूंढ़ता  हूँ उन पलों को-
जो 'पल' कभी हमने साथ ;
इक साथ गुजारे थे...
वो पल जो गवाह हैं,
हमारे 'प्यार' के...
 
मगर इस आलम में,
मुझे मिलता है --
सिर्फ... 'अकेलापन'....
उन पलों की बस याद ही,
मेरे पास रह गयी है--
और साथ रह गयी है---
मेरी यह -- " नयी दोस्त...................
...................."