Tuesday, July 22, 2014

ख़ामोशी










ख़ामोशी
परत दर परत
जमती जाती है
एहसासों पर...

सन्नाटा लफ़्ज़ों पर
गिरफ्त बढ़ा है
लम्हा लम्हा

हमारे बीच की आवाजें
अब दफ़न हो रही हैं.......!!!!



मानव मेहता 'मन' 

7 comments:

  1. जब शब्द चुप हो जाते हैं तब खामोशिय बोलती हैं ... सुन्दर भाव!

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  2. आधुनिक समाज की त्रासदी है ख़ामोशी. सुंदर रचना.

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  3. शब्दों की तन्हाई चित्र सी !

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  4. बहुत सुन्दर रचना छोटी सी पर अर्थपूर्ण !
    आभार …

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता